Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 4
वैराग्य सम्बोधन
( एक वैराग्य पत्र)
आत्मा को ज्ञानशरीर से भिन्न करने के लिये कोई समर्थ नहीं है। क्षणिक प्रसंगों से घबड़ाकर दीन हो जाना शोभा नहीं देता।
★ धैर्यवन्त जीव को किसी भी प्रसंग को बहुत ही वैराग्य का कारण बनाकर सच्ची आत्मशान्ति प्रगट करने की ओर आत्मा को लगाना। संसार तो बहुत देखा - परन्तु सार कुछ नहीं निकला, तो अब सार निकले ऐसा करनेयोग्य है । जहाँ शरीर और पुत्र भी आत्मा के नहीं, वहाँ दूसरा कौन आत्मा का है ? जिसके लिये जीवन का कीमती समय दें ?
★ अहो, ऐसा अपना जैनधर्म ! वह अपने को कदम-कदम पर परम वीतरागता सिखलाता है। आत्मा में कोई अपार ताकत है; ज्ञान की-वैराग्य की-आनन्द की अपार ताकत आत्मा में है; क्षणिक छोटे प्रसंगों से घबराकर दीन हो जाना आत्मा को शोभा नहीं देता ।
★ ज्ञानी - सन्त पुकार करके कहते हैं कि अरे वीर ! तू जाग ! उठ ! तेरी प्रभुता को सम्हाल । तेरा चैतन्य जीवन नष्ट नहीं हो गया; जीता-जागता चैतन्य भगवान तू है, तीन लोक की प्रतिकूलता का ढेर भी आत्मा को उसके ज्ञानशरीर से भिन्न करने में समर्थ नहीं है । घबरा मत, हताश मत हो ।
★ वीतराग की भावना द्वारा ही भव का नाश होता है। ऐसी भावना के लिये सन्त पुरुषों के निकट बसना, वह अच्छा है,
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