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________________ 72] www.vitragvani.com [ सम्यग्दर्शन : भाग - 4 वैराग्य सम्बोधन ( एक वैराग्य पत्र) आत्मा को ज्ञानशरीर से भिन्न करने के लिये कोई समर्थ नहीं है। क्षणिक प्रसंगों से घबड़ाकर दीन हो जाना शोभा नहीं देता। ★ धैर्यवन्त जीव को किसी भी प्रसंग को बहुत ही वैराग्य का कारण बनाकर सच्ची आत्मशान्ति प्रगट करने की ओर आत्मा को लगाना। संसार तो बहुत देखा - परन्तु सार कुछ नहीं निकला, तो अब सार निकले ऐसा करनेयोग्य है । जहाँ शरीर और पुत्र भी आत्मा के नहीं, वहाँ दूसरा कौन आत्मा का है ? जिसके लिये जीवन का कीमती समय दें ? ★ अहो, ऐसा अपना जैनधर्म ! वह अपने को कदम-कदम पर परम वीतरागता सिखलाता है। आत्मा में कोई अपार ताकत है; ज्ञान की-वैराग्य की-आनन्द की अपार ताकत आत्मा में है; क्षणिक छोटे प्रसंगों से घबराकर दीन हो जाना आत्मा को शोभा नहीं देता । ★ ज्ञानी - सन्त पुकार करके कहते हैं कि अरे वीर ! तू जाग ! उठ ! तेरी प्रभुता को सम्हाल । तेरा चैतन्य जीवन नष्ट नहीं हो गया; जीता-जागता चैतन्य भगवान तू है, तीन लोक की प्रतिकूलता का ढेर भी आत्मा को उसके ज्ञानशरीर से भिन्न करने में समर्थ नहीं है । घबरा मत, हताश मत हो । ★ वीतराग की भावना द्वारा ही भव का नाश होता है। ऐसी भावना के लिये सन्त पुरुषों के निकट बसना, वह अच्छा है, Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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