Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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अपने आत्मा को अरिहन्त भगवान जैसा जाना हो, वही अरिहन्त भगवान जैसी दशारूप होने की भावना करता है। इस प्रकार अरिहन्त भगवान को पहिचाने बिना सुख का सच्चा उपाय नहीं बन सकता।
Is मुझे अरिहन्त भगवान जैसा पूर्ण सुख प्रगट करना है, अर्थात् अरिहन्त भगवान जैसी सामर्थ्य मेरे आत्मा में है-ऐसा जिसने स्वीकार किया, उसने अरिहन्त भगवान जैसे द्रव्य-गुणपर्याय के अलावा सब अपने में से निकाल दिया–अर्थात् वह मेरा स्वरूप नहीं-ऐसी प्रतीति की। आत्मा, पर का कुछ करे, निमित्त से लाभ-नुकसान हो या शुभभाव से धर्म हो-ये सब मान्यताएँ मिट गयीं, क्योंकि अरिहन्त भगवान के आत्मा में ये कुछ नहीं है। ___ अरिहन्त भगवान के द्रव्य-गुण-पर्याय का स्वरूप जानने से अपने आत्मा के द्रव्य-गुण-पर्याय पहिचाने जाते हैं। इस प्रकार आत्मा के द्रव्य-गुण-पर्याय को जानकर, सभी पर्यायों को और गुणों को एक चैतन्यद्रव्य में ही अन्तर्गत करने से एकाकार चैतन्यद्रव्य ही लक्ष्य में रह जाता है, उस क्षण सर्व विकल्पों की क्रिया रुक जाती है और मोह का नाश होकर अपूर्व सम्यग्दर्शन होता है-चैतन्य चिन्तामणि प्राप्त होता है।
IT अरिहन्त भगवान के साथ तुलना करके आत्मा के द्रव्यगुण-पर्याय का वास्तविकस्वरूप जिसने निर्णीत किया हो, वह गुण-पर्यायों को एक परिणमते द्रव्य में समाहित करके द्रव्य को अभेदरूप से लक्ष्य में ले सकता है। अरिहन्त जैसे अपने द्रव्य
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