Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
परद्रव्य की धारकता शीघ्रता से तजो। * परद्रव्य की रमणता शीघ्रता से तजो। * परद्रव्य की ग्राहकता शीघ्रता से तजो। * परभाव से विरक्त होओ।
विकल्प से-शुभराग से-आत्मा को कुछ लाभ होगाऐसी मान्यता छोड़कर; परद्रव्याश्रित जितने भाव हैं, वे भाव आत्मा में धारण करनेयोग्य नहीं हैं, उनकी धारकता शीघ्रता से छोड़नेयोग्य है। लोग कहते हैं कि अभी व्यवहार छोड़ने का मत कहो। – यहाँ तो कहते हैं कि उसे शीघ्र छोड़ो। जितने परद्रव्याश्रित भाव हैं, वे सब शीघ्र छोड़नेयोग्य हैं-ऐसा लक्ष्य में तो लो।
हे जीव! अन्तर में आनन्द का सागर तेरा आत्मा कैसा है, उसे खोज । स्वद्रव्य को छोड़कर, परद्रव्य में रमना, वह तुझे शोभा नहीं देता, उसमें तेरा हित नहीं है। अन्तर्मुख होकर स्वभाव में रमण कर... उसमें तेरा हित और शोभा है। वही मोक्ष का मार्ग है।. 1----
----------- जो करे... वह पावे हे भाई! यदि तेरे ज्ञानस्वरूप की अनुभूति तूने नहीं की तो । शास्त्र पढ़-पढ़कर या सुन-सुनकर तूने क्या सार निकाला? वाँचनश्रवण का सार तो यह है कि परभावों से भिन्न होकर ज्ञानभावरूप परिणमना। जिसका वाँचन-श्रवण किया, उस शास्त्र में तो ऐसा
कहा है कि 'तू तेरे ज्ञानस्वरूप का अनुभव कर।' तद्नुसार जो ! करे, वही सिद्धि को पाता है, वही सम्यग्दर्शनादि शुद्धभावरूप
होता है और उसका ही ज्ञान सफल है; इसलिए तू ज्ञानचेतनारूप
|
हो।
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