Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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वास्तविक स्वरूप तो विकाररहित शुद्ध परिपूर्ण है, वह हमें दर्शाना है और उस शुद्ध आत्मस्वरूप के प्रतिबिम्ब समान श्री अरिहन्त भगवान हैं, क्योंकि वे सर्व प्रकार से शुद्ध हैं; इसलिए हे भाई! तू अरिहन्त भगवान के आत्मा को पहचान और तेरे आत्मा को भी वैसा ही जान। ___ इस आत्मा को द्रव्य-गुण तो सदा ही शुद्ध है और पर्याय की शुद्धता नयी प्रगट करनी है। पर्याय की शुद्धता प्रगट करने के लिये द्रव्य-गुण और पर्याय की शुद्धता का स्वरूप कैसा है, वह जानना चाहिए। अरिहन्त भगवान का
आत्मा द्रव्य-गुण और पर्याय तीनों प्रकार से शुद्ध है, उनके स्वरूप को जानने पर, अपने शुद्धस्वभाव की प्रतीति होती है, और पर्याय में शुद्धता होने लगती है। ___ अरिहन्त भगवान का आत्मा परिस्पष्ट है, सर्व प्रकार से स्पष्ट है, उन्हें जानने पर ऐसा होता है कि अहो! यह तो मेरे शुद्धस्वभाव का ही प्रतिबिम्ब है, मेरा स्वरूप ऐसा ही है-इस प्रकार यथार्थरूप से आत्मस्वभाव का भान होने पर, शुद्ध सम्यक्त्व प्रगट होता है।
S अरिहन्त भगवान को राग का अत्यन्त अभाव होकर परिपूर्ण केवलज्ञान प्रगट हो गया है। उस केवलज्ञान में जो ज्ञात हुआ, वह बदलता नहीं-ऐसा निर्णय करने में भगवान के केवलज्ञान की प्रतीति आ जाती है और केवलज्ञान की प्रतीति करने पर अपना परिपूर्ण ज्ञान-सामर्थ्य कैसा है? - यह भी प्रतीति में आ जाता है और सम्यग्दर्शन होता है। इस प्रकार केवलज्ञान का यथार्थ निर्णय, वह सम्यग्दर्शन का कारण है।
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