SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्दर्शन : भाग -4] www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन के लिये अरिहन्तदेव को पहिचानो [ 25 अरिहन्तदेव अर्थात् शुद्ध आत्मा; जिसमें देह नहीं, जिसमें राग नहीं, जिसमें अपूर्णता नहीं - ऐसे शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मा, वह अरिहन्त है; उन्हें पहचानने से देह से भिन्न, राग से भिन्न परिपूर्ण शुद्ध आत्मा अवश्य पहिचाना जाता है, अर्थात् सम्यग्दर्शन होता है और तभी से सच्चा जैनत्व होता है । इसलिए हे जीवो! तुम अरिहन्तदेव को पहिचानो । यहाँ श्रीगुरु उनकी पहचान कराते हैं 1 I श्री अरिहन्त भगवान को नमस्कार हो ॥ अरिहन्त भगवान अपने इष्टदेव हैं, इसलिए उनका स्वरूप भलीभाँति पहचानना चाहिए । ॥ अरिहन्त भगवान का स्वरूप भलीभाँति पहचानने से आत्मा का सच्चा स्वरूप पहिचाना जाता है, क्योंकि अपने आत्मा का स्वरूप भी वास्तव में अरिहन्त भगवान जैसा ही है । अनादि काल से आत्मा में जो मिथ्यात्वभाव है, वह अधर्म है। इस आत्मा का स्वभाव, अरिहन्त भगवान जैसा ही, पुण्य-पाप से रहित है। उसे चूककर, पुण्य-पाप को ही अपना स्वरूप मानना, वह मिथ्यात्व है । उस मिथ्यात्व का नाश कैसे हो और सम्यक्त्व कैसे प्रगट हो ? उसका उपाय कहते हैं । – जो कोई जीव, अरिहन्त भगवान के आत्मा के द्रव्य Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy