Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
इसलिए वहाँ एक नजर से देखता रहता है, वहाँ नींद नहीं आती, प्रमाद नहीं करता। उसी प्रकार हे भाई! शरीरादिक से भिन्न ऐसे चैतन्यतत्त्व को देखने के लिये जगत की प्रतिकूलता का लक्ष्य छोड़कर अन्तर में कौतूहल कर, पूर्व में कभी नहीं देखे हुए ऐसे परम चैतन्य भगवान को देखने के लिये उत्कण्ठा कर। प्रमाद छोड़कर उसमें उत्साह कर।
(7) जिसे चैतन्यतत्त्व के अनुभव की उत्कण्ठा लगी हो वह जीव, जगत् की मृत्यु तक की प्रतिकूलता को भी गिनता नहीं है। सामने प्रतिकूलतारूप से मरण तक की बात ली है और यहाँ चैतन्य को देखने के लिये छटपटाहट-कौतूहल की बात ली है। इस प्रकार पारस्परिक उत्कृष्ट बात ली है। चैतन्यतत्त्व को देखने के लिये सामने शरीर जाने तक की प्रतिकूलता लक्ष्य में लेकर उसकी दरकार जिसने छोड़ी, वह जीव, संयोग की दृष्टि छोड़कर अन्तर के चैतन्यस्वभाव में झुके बिना नहीं रहेगा। असंयोगी चैतन्यतत्त्व का अनुभव करने की जिसे कामना है, वह जीव बाहर में शरीर के वियोग तक की प्रतिकूलता आवे तो भी उलझता नहीं। यहाँ यह बात भी समझ लेना कि चैतन्य के अनुभव का आकांक्षी जीव जैसे जगत् की प्रतिकूलता को गिनता नहीं, वैसे जगत् की अनुकूलता में वह उत्साह भी नहीं करता तथा बाहर के जानपने में सन्तोष मानकर वह अटक नहीं जाता। अन्तर में एक चैतन्यतत्त्व की ही महिमा उसके हृदय में बसती है, इसके अतिरिक्त अन्य सभी की महिमा उसके हृदय में से छूट गयी होती है। इसलिए चैतन्य की
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