Book Title: Samipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
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राम का वनप्रवेश एवं महाकवि का परकायाप्रवेश*
वसन्तकुमार म. भट्ट
आदिकाव्य रामायणकी रामकथा का महाकवि कालिदास ने रघुवंश में पुन:कथन किया है। रघुवंश के १० से १५ सर्ग पर्यन्त, अर्थात् कुल छ सर्गों में यह पुनः कथन प्राप्त होता है । परन्तु इन छ सर्गों में से बारहवाँ सर्ग केन्द्रवर्ती है। क्योंकि इस सर्ग में महाकविने रामायण के अयोध्याकाण्ड अरण्यकाण्ड विषमन्धाकाण्ड सुन्दरकाण्ड और युद्धकाण्ड, की सम्पूर्ण कथा को केवल एक ही श्वास में कह दी है !
कथा मूल में अतिविस्तृत फलक पर कही गई हैं। उसीको महाकवि कालिदास जब एक ही सर्ग में प्रस्तुत करना चाहते हैं तब स्वाभाविक ही है कि यह मूलकथा को कहने में क्षिप्रगामी भी बनेंगे एवं संक्षेपवाची भी बनेंगे। परन्तु जैसे ही क्षिप्रता एवं संक्षेप का काव्य में प्रवेश होता है, वहीं पर कवि की परीक्षा शुरू होती हैं।
बीस हजार से भी अधिक श्लोकों में कही गई रामकथा कालिदासने केवल १०४ श्लोकों में ही सीमट कर रख दी है । इस संक्षेप का महिमा तो तब नीखर कर सामने आता है कि जब यह देखा जाता है कि कवि कालिदासने यहाँ बारहवें सर्ग में शार्दूलविक्रीडित या स्रग्धरा जैसा अधिकाक्षरों वाला वृत्त भी उपयोग में नहीं लिया है; परन्तु अष्टाक्षर गायत्रपादवाला अनुष्टुप् छन्द ही उपयोग में लिया है। दूसरा ज्ञातव्य बिन्दु यह भी है कि मूलकथा के विस्तार का संक्षेपीकरण करते समय महाकवि कुत्रचिद भी अपनी वैदर्भी शैली को छोडते नहीं है । महाकवि की वर्णनकला की यह भी एक परम सिद्धि है।
किन्तु किसी भी कवि के पास केवल वर्णनकला होने से तो काव्य बनता नहीं है। क्योंकि कहा गया है :
"वर्णनाद् दर्शनाच्चैव कविरित्युच्यते ॥" वर्णन के साथ साथ कवि में दर्शन-क्षमता भी होनी चाहिए । 'कवि' वही है, जो कान्तद्रष्टा होता है। जिसका प्रातिभ-चक्षु भूत-भविष्य-वर्तमान में अव्याहत गति से देख सकता है, वही 'कवि' है । और जो वर्ण्य कथा के विभिन्न पात्रों के मनोगत भावों को जानने के लिए परकायाप्रवेश कर सकता है, वही कवि है । क्योंकि जिस स्थलकाल को कवि ने देखा हो या जो परिस्थिति का कवि ने स्वयं अनुभव किया हो उसका तो वह यथावत् वर्णन कर सकता है। परन्तु जो भी ऐतिहासिक पात्र होते है उनके व्यक्तित्त्व को आकारित करने के लिए तो कवि के पास परकायाप्रवेश की असाधारण शक्ति होनी ही चाहिए । ★ विक्रम विश्वविद्यालय एवं कालिदास अकादमी द्वारा आयोजित ५० वाँ कालिदास - समारोह, (१-७, Nov. 2006)
उज्जैन में प्रस्तुत किया गया लेख । + अध्यक्ष, संस्कृतविभाग, गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद
राम का वनप्रवेश एवं महाकवि का परकायाप्रवेश
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