Book Title: Samipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
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कालिदास की तुलना में आज गृहस्थाश्रम निम्नस्तर पर आ गया है, समाज में स्त्रियों का स्थान निम्न स्तर पर आ गया है। स्त्रियों को आदर की भावना से नहीं देखा जाता । आधुनिक शिक्षा पद्धति के कारण प्रजा में संस्कार का अभाव हो गया है । पुत्रैष्णा की तीव्र इच्छा में आज कन्या होने पर गर्भपात करा दिया जाता है, परिणाम स्वरूप आज समाज में कन्याओं की कमी महसूस होने लगी है । सामाजिक असमतुला पैदा हो गई है । पश्चिमी संस्कृति के कारण पतिव्रता स्त्रियों का अभाव दिखाई पड़ता है, सामाजिक असभ्यता बढ़ती जाती है । हरेक व्यक्ति अपने आप में छीपी हुई - बुराई को नहीं देखता और अच्छे आदमी होने का ढोंग करता है । छोटी उम्र में विवाह सम्बन्ध, सामाजिक अज्ञानता, शिक्षा की कमी, बड़ा कुटुम्ब आदि समस्याएँ समाज को दुराचार की ओर ले गई हैं ।
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प्राचीन काल में राजा दीन-दुखियों या पीड़ितों की सहायता के लिए आवश्यकता आ पड़ने पर, वह अपनी जान पर भी खेलने को तैयार रहता था । प्रजा को वह अपनी सन्तान के सम्मान प्यार और पालन करता था । “सुशासन के कारण प्रजा सुखी और समृद्ध थी । वह उन अभावों से मुक्त थी जिनसे विवश होकर लोग अपराध करते हैं ।" राजकर्मचारी इतने सतर्क थे कि अपराध करनेवाले को तुरन्त पकड़ लेते थे । कालिदास की रचनाओं में उस समय के समाज की नैतिक व्यवस्था का जो चित्र उपलब्ध होता हैं, वह बहुत कुछ विक्रम के राज्यशासन से मिलता-जुलता है, ऐसा अनेक ग्रन्थों के उल्लेख से मालूम पड़ता हैं । दिलीप के राज्य में चोरी का नाम सुनाई नहीं पड़ता था, पराये धन को कोई छू नहीं सकता था । उस समय में सत्पुरुष को सम्मान और दुष्ट पुरुष निकट का सम्बन्धी हो तो भी दंड दिया जाता था । रिश्वत देने या राजकर्मचारी द्वारा बलपूर्वक रिश्वत लेने की मनाई थी, किन्तु पकड़े जाने पर कठोर दंड दिया जाता था ।
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आधुनिक युग में नैतिक जीवन अध: पतन की ओर आ चुका है। प्रशासन में बैठे राजनेता दीनदुखियों या पीड़ितो की सहायता से विमुख रहते हैं । कुदरती आपत्ति, प्रकोप और अन्य आपत्तियों के समय राजनेता प्रज्ञा को आश्वासन देकर चले जाते हैं। प्रजा को संभालनेवाला कोई नहीं रहता । राजकर्मचारी बिना रिश्वत लिये प्रजा का कोई कार्य नहीं करते । राजकर्मचारी कामचोरी करते हैं, राजनेता देश का धन लूटते हैं, तो सामान्य प्रजा चोरी, डकैती, लूटफाट आदि करती है । इस प्रकार सामाजिक बुराईया प्राचीनकाल की तुलना में और बढ़ गई हैं ।
कालिदास का युग ऐसा सन्धिकाल था, जब यज्ञ-याग आदि का स्थान शिव, विष्णु, स्कन्द जैसे देवताओं की मूर्तिपूजा ने लिया है । उच्चवर्ग के लोगों की भाषा संस्कृत थी । राजमहेलों और साहित्य के क्षेत्र में भी उसे प्रधान स्थान प्राप्त हो चुका था । उस समय उत्तर तथा पश्चिमोत्तर भारत में बौद्धों की महायान शाखा अपना साहित्य संस्कृत भाषा में ही लिख रही थी । इस युग में वेद का अध्ययन उसके छह अंगो - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द तथा ज्योतिष के साथ किया जाता था । ब्राह्मण, उपनिषद्, सूत्रग्रन्थ, रामायण, महाभारत और सांख्य आदि दर्शन पाठ्यक्रम के अन्तर्गत थे । धर्म को लेकर मनु आदि के धर्मशास्त्र तथा अर्थ के विषय में कौटिल्य आदि के अर्थशास्त्र के ग्रंथ बने । काम विषय पर वात्सायन का कामशास्त्र आज भी उपलब्ध है, जिसका उपयोग कालिदास ने अच्छी तरह किया है । नागरिक सुसंस्कृत व्यक्ति होता था, अतः उसके व्यवहार में प्रायः उच्छृंखलता का फूहड़पन नहीं आता था ।
सामीप्य : खोस्टो २००६ - भार्य, २००७
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