Book Title: Samipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 100
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir stances. As a married woman, It was her responsibility to save her husband's life. She was mentally strong. (4) The language of poem is sweet . (6) Savitri is a representative of Indian culture and Dr. Jani proves that we can take a message from this devoted couple. We congratulate to Dr. Jani for 'Savitri Shatakam.' Prof. Rakesh R. Patel Lecturer in Sanskrit, P.K. Chaudhary Mahila Arts College, Sector-7, Gandhinagar. सवत्सा गौ अथवा सवत्स धेनु, लेखक : डॉ. ए. एल. श्री वास्तव, प्रकाशनः सूकरक्षेत्र शोध संस्थान, किला शंकरगढ, कासगंज (उ.प्र.), प्रथम संस्करण : २००६, मूल्य : एक सो रुपये, पृष्ठ संख्या : ११, ८२, चित्रसंख्या : २२ (श्वेत-श्याम) __ हमारा जीवन कृषि के विकास से पहले पशुपालन पर निर्भर था । जिन पशुओं का पालन किया जाता था उनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गाय थी । गाय से हमें सुस्वाद पौष्टिक दूध मिलता है । दूध से पायस, दही, रबडी, मलाई, मक्खन, घी आदि अनेक मधुर व्यंजन बनाए जाते थे। भारतीय संस्कृति की आधार- शिला के रूप में गाय को मान्यता प्राप्त है। इस मान्यता पीछे सांस्कृतिक महत्त्व के साथ आर्थिक पक्ष (गोदुग्ध, गोधृत, गोमूत्र आदि के कारण) सुद्दढ है । हमारे लोकजीवन में अनेक शुभाशुभ शकुन माने जाते है । इनमें सवत्सा गौ, यानी बछडे को दूध पिलाती गाय एक सर्वज्ञात शुभ शकुन है। हमारी संस्कृति में गोदान का बड़ा महत्त्व है। किन्तु गोदान अकेली गाय का नहीं बछडे सहित पयस्विनी गाय का ही किया जाता है । हमारे साहित्य में सवत्सा गौ का महत्त्व यत्र-तत्र-सर्वत्र मिलता है। पुरातात्त्विक दृष्टि से भी 'सवत्सा गौ' के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है। भारद्वाज ऋषि ने गाय को देवाधिदेव का साक्षात् प्रतिनिधि माना है। पुराण तथा संस्कृत के महाकाव्य गाय की महिमा से भरे पड़े हैं । कार्तिक शुक्ल अष्टमी 'गोपाष्टमी' के रूप में आज भी मनाई जाती है। आज भी दीपाली के दूसरे दीन गोधनपूजा की परंपरा प्रचलित है । 'गौ' को ही पृथ्वी का रूप माना है । लोकविश्वास के अन्तर्गत अनेक शुभ-अशुभ शुकनों का बड़ा महत्व है। ये शुभाशुभ शकुन-विचार हमारी वर्तमान लोक और शिष्ट दोनों संस्कृतियों में समान रूप से पाया जाता है। राजस्थान तथा मध्यप्रदेश में भी गौ-सेवा तथा सबेरे सबेरे गाय को चारा खिलाने की परंपरा है। दक्षिण भारत में भी गाय को साक्षात कामधेनु मानकर उसकी पूजा की जाती है । वहाँ भी यह विश्वास है कि गाय के अंग में सभी देवताओं का वास होता है । गुजरात में गायों को सुबह-सुबह हरा चारा खिलाने की परम्परा आज भी है । लोग ठेलो में हरा चारा भरकर सबेरे-सबेरे निकलते हैं और उसे बेचते नहीं हैं, बल्कि ढूंढ-ढूंढ कर गायों को खिलाते हैं। महाराष्ट्र में पीतल की गाय और बछडा पूजाघर में रहेते हैं जहाँ उन्हें ठाकुर (भगवान) जैसा मानकर पूजा जाता है । समुचे देश में गाय की पूजा का प्रचलन है । इस प्रकार द्वितीय शती ई.पू. से लेकर आज तक सवत्सा गौ अथवा धेनु को शुभ शकुन मानने के साक्ष्य हमारे साहित्य में और पुरातात्विक साक्ष्यों में बिखरे पडे हैं । ગ્રંથાવલોકન For Private and Personal Use Only

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