Book Title: Samipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
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पर व्यंग्य से कटाक्ष किया है। उपनिषदों में 'अन्न का निषेध न करो' ऐसा उपदेश दिया है । मनु ने केवल वानप्रस्थ तथा घोर पाप का प्रायश्चित करनेवाले के लिए ही पंचाग्नितापन आदि उपवासों की व्यवस्था की है । इस प्रकार उस समय के समाज में अहिंसा का बड़ा प्रभाव था ।
कालिदास की तुलना में आधुनिक भारत में अहिंसा का प्रभाव अच्छा नहीं है, महात्मा गांधी ने अहिंसा को अपना शस्त्र बनाया था । जैनाचार्यों के अहिंसा के विचार बहुत सुचारु, और समाज - उत्थान के लिए प्रभावकारी हैं, किन्तु आज का आधुनिक समाज पापाचार, हिंसाचार में डूबा है इसलिए महात्मा और जैनधर्म के अहिंसा के विचार प्रभावशाली नहीं होते । आधुनिक युग में गौहत्या और अन्य पशुपक्षीओं की हत्या का सिलसिला बढ़ गया है, इसलिए मांसाहार का भी महत्त्व बढ़ गया है। पर्यावरण और पशु- - पक्षी की अनेक जातियाँ लुप्त होती जा रही हैं। आधुनिक प्रजा ने पर्यावरण और कुदरती संपत्ति को बहुत नुकसान पहुँचाया हैं । पर्यावरण के बिना आज विश्व मानो धगधगते गोले में परिवर्तित होता जा रहा है । मनु, उपनिषद तथा कालिदास के अहिंसा और प्रकृति के सिद्धांत को मानो अभिशाप लग गया है ।
प्राचीन भारत में ऋतुओं के अपने उत्सव थे। उनमें भी वसन्तोत्सव का विशेष महत्त्व था । शाकुन्तल में सानुमती अप्सराने कहा है कि 'मानव उत्सवों के बड़े प्रेमी होते हैं। स्त्रियाँ पति, पुत्र की दीर्घायु, पति का प्रेम प्राप्त करना आदि अनेक प्रयोजनों से व्रत रखती थीं । चित्रकला, नाचना, गानाबजाना आदि मनोरंजन के साधन थे । मन्दिरों तथा उत्सवों में नृत्य भी बहुत प्रचलित थे ।
प्राचीन भारत की तुलना में आधुनिक युग में उत्सव, मनोरंजन शुश्क हो गये हैं, प्रजा उत्सवों से विमुख होकर निरुत्साहित हो गई है । धार्मिक उत्सवों में शुष्कता के कारण प्रजा निर्माल्य होती जा रही है । उत्सवों और मनोरंजन से प्रजा में नये संचार का उद्भव होता है, वह आज नहीं दिखाई पड़ता । कालिदास के समय गृहस्थाश्रम चारों आश्रमों में श्रेष्ठ समझा जाता था। समाज में स्त्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था । शिवजी द्वारा बुलाये जाने पर जब सप्तर्षि उनके स्थान पर पहुँचे, तब वसिष्ठ के वाम पार्श्व में देवी अरुन्धती के दर्शन पर उन्हें गृहस्थाश्रम की महिमा का अनुभव हुआ और उन्होंने विवाह का निश्चय कर लिया । उनके इस निश्चय से प्राजापत्य महर्षियों का सिर भी ऊँचा हो गया। समाज में स्त्रियों को सम्मानास्पद पद प्राप्त था । वे शिक्षित होती थीं और उनकी शिक्षा में इतिहास, पुराण, चित्रकला तथा नृत्य, संगीत आदि पर विशेष बल दिया जाता था। पति के साथ यज्ञ आदि धार्मिक क्रियाओं में भाग लेती थीं, इन्दुमती ने स्वयंवर को पसंद किया था और पार्वती ने स्पष्ट ही कह दिया था कि वे शिव से ही विवाह करेंगी। राजा अग्निवर्ण की मृत्यु हो जाने पर उसकी रानी का विधिवत् राज्याभिषेक किया गया था । राजाओं तथा धनी परिवारों में बहुविवाह भी प्रचलित था । कोई-कोई स्त्री अपने पति के साथ सती भी हो जाती थी । कन्या को पराया धन समझा जाता था और उसके लिए योग्य घर की चिन्ता माता-पिता को होती थी । कन्या के जन्म पर उत्सव मनाया जाता था । पुत्र पुत्री जन्म के समय की महिमा का वर्णन कवि ने अपने ग्रन्थों में किया है । कालिदास के ग्रन्थों में कुलीन कन्याओं और विवाहिता नारियों के सुन्दर चित्रों की भी कमी नहीं ।
कालिदास के समय का भारत : आधुनिक भारत के परिप्रेक्ष्य में ।
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