Book Title: Samipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पादटिप्पण अ. वाग्भटकृत काव्यानुशासन १/१ नि.सा. आवृत्ति १९६५ व. नरेन्द्रप्रभसूरिकृत अलंकारमहोदधि १/१ : सं. एल.बी.गान्धी, जी.ओ. ऐस. बरोडा, १९४२ क. आचार्य अजितसेनकृत अलंकार चिन्तामणि सं. नेमिचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ही, : १९७३, इत्यादि ग्रंथ का मंगलपद्य २. बालस्त्रीमूढमूर्खाणां नृणां चारित्रकाक्षिणाम् । अनुग्रहार्थं तत्त्वज्ञैः सिद्धन्तः प्राकृतः कृतः ॥१॥ (का.शा. हेमचन्द्र वृत्ति में उद्धृत पद्य पृ. १) : सं. डॉ. तपस्वी नान्दी, एल.डी.इन्स्टिीट्यूट ऑफ इन्डोलोजी, अहमदाबाद, ई.स. २०००. तदेतग्दीतादिसाधारणमिति विशिनष्टि । परमार्थो निःश्रेयसं तदभिधानशीलां परमार्थाभिधायिनी द्रव्याद्यनयोगानामपि पारम्पर्येण निःश्रेयसप्रयोजनत्वात् । तथा सर्वेषां सुरनरतिरश्चां विचित्रासु भाषासु परिणता तन्मयतां गतां सर्वभाषापरिणताम् । एकरूपापि हि भगवतोऽर्धमागधी भाषा । वारिदविमुक्तवारिवदाश्रयानुरूपतया परिणमपि । यदाह - देवा दैवीं नरा नारी शबराश्चापि शाबरीम् । तिर्यञ्चोऽपि हि तैरश्ची मेनिरे भगवग्दिरम् ॥२॥ न ह्येवंविधं भुवनाद्भुतमतिशयमन्तरेण युगपदनेकः सत्त्वोपकारः शक्यकर्तुम् । (वही पृ. १) का.शा. १/१ विवेक (पृ. २) : संपा. र.छो. परीख महावीर जैन विद्यालय मुंबई, १९३८ अनुयोग चार प्रकार के हैं - चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग - जो परंपरासे निःश्रेयस मोक्षके साधक बन सकते हैं। बारह अंग निम्नोक्त हैं - (१) आचारांग (२) सूत्रकृतांग (३) स्थानाङ्ग (४) समवायाङ्ग (५) भगवती (६) ज्ञाताधर्मकथा (७) उपासकदशा (८) अन्तःकृतदशांग (९) अनुत्तरोपपातिक (१०) प्रश्नव्याकरण (११) विपाक (१२) दृष्टिपाद । ना.द. पृ. १,२ संपाः. आचार्य विश्वेश्वर. दिल्ली विश्वविद्यालय, १९६१. ॐ ६ . जैनी वाचमुपास्महे- (हम जैनी वाणी की उपासना करते हैं)* - काव्यानुशासन और नाट्यदर्पण ... ४३ For Private and Personal Use Only

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