Book Title: Samipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास के समय का भारत : आधुनिक भारत के परिप्रेक्ष्य में ।' डॉ. रवीन्द्र पटेल संस्कृत साहित्य के शिरमोर कवि कालिदास के समय में तत्कालीन परिस्थितियों तथा घटनाओं का गहरा प्रभाव उनके साहित्य में पडे बिना नहीं रहता । कालिदास के विचारों को पूर्णतया समझने के लिए उनके काव्यों का आस्वादन करने से तत्कालीन भारत का त्रादृश वर्णन मिलता हैं । जिन राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परिस्थितियों में एवं जिन प्रदेशों और अवस्थाओं में रहकर उसने अपने ग्रंथों की रचना की इसका वर्णन उनके ग्रन्थों से प्राप्त होता है । __ कालिदास के समय में राजा तथा प्रजा के परस्पर सम्बन्ध अत्यन्त मधुर थे । राजा अपना प्रधान कर्तव्य प्रजानुरंजन समझता था और प्रजा को अपनी सन्तान के समान मानता था। प्रजा भी उसे पितृतुल्य समझती थी । यद्यपि दण्डव्यवस्था कठोर थी, तथापि उसकी आवश्यकता कदाचित् ही पड़ती थी। न्याय में अपने-पराये का भेद नहीं होता था । रघुवंश उसका साद्यन्त उदाहरण है। ___कालिदास के समय के संदर्भ में आधुनिक भारत में प्रशासन और प्रजा में वैमनस्य बढ़ गया हैं । राजनेता भ्रष्टाचार, अनीति, अव्यवहार आदि में फसे हुए हैं । बिना घूस के प्रजा का कोई कार्य संपन्न नहीं होता । अपराधी खुलेआम घूमते हैं, और जो निरपराध होते हैं, उनको दंड दिया जाता है। न्यायव्यवस्था भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है। तत्कालीन समय में प्रजा से लिया कर प्रजा पर ही व्यय किया जाता था । राजा ही प्रजा की शिक्षादीक्षा तथा उसकी जीविका की व्यवस्था के लिए उत्तरदायी था । राजकोष पर राजा का अधिकार न था, वैयक्तिक दानपुण्य वह अपनी निजी सम्पत्ति में से करता था । रघु ने कौत्स को जो दान दिया था, वह राजकोष से नहीं, किन्तु अपनी निजी सम्पत्ति में से दिया था । आधुनिक भारत के राज्यकर्ता प्रजा के धन को हर कर अरबोपति बन जाते हैं, प्रजा से लिया कर प्रजा के लिए खर्च नहीं होता । राज्यकर्ता अपना नीजी खर्च राजकोष से ही करते हैं । ऋषियों के आश्रम नगर, ग्राम आदि से दूर होते थे । गुरुकुल को माता के गर्भ जैसा जाना जाता था, जिन पर बहार की उथल-पुथल का प्रभाव नहीं पड़ता था । विद्यार्थी एकाग्र होकर अपने अध्ययन में लगे रहते थे। ऋषि-मुनि अपने आदर्श, आचार तथा उपदेश से देश के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाते थे । दशरथ को वशिष्ठ के चरणों में देखकर कितने ही उच्च वृत्तिवाले नवयुवकों को राजसी ठाटवाले दशरथ की अपेक्षा तपस्वी वशिष्ठ बनने की प्रेरणा मिलती थी। आज गुरुकुल पद्धति बिलकुल नष्ट हो गई है, इससे गुरु और शिष्य-परंपरा में काफी अन्तर बढ़ गया है । शिष्य अपने गुरु को गुरु नहीं मानता और गुरु भी धन इकट्ठा करने में व्यस्त हो गये + अखिल भारतीय कालिदास समारोह, उज्जैन, नवे. २००६ में प्रस्तुत शोधपत्र । ★ पीएच.डी. स्कोलर, रतनपुर, ता. ईडर, जि. सा.का. ३८३४३० कालिदास के समय का भारत : आधुनिक भारत के परिप्रेक्ष्य में । ૩૧ For Private and Personal Use Only

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