Book Title: Samipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को पीड़ित करने के अनन्तर क्रोध से नेत्र लाल करके प्रलम्बासुर के मस्तक पर घूँसा मारते हैं जिसकी चोट से प्रलम्बासुर की दोनों आँखें बाहर निकल आती हैं १२ । यहाँ बलराम तथा प्रलम्बासुर आलम्बन तथा बलराम आश्रय हैं । बलराम के चित्त में स्थित (शत्रु को मारने के लिये) उत्साह स्थायीभाव है । बलराम के नयनों का क्रोध से लाल हो जाना अनुभाव है । पञ्चम अंश के अध्याय बीस के श्लोक सं० ३० से ४१ के मध्य वीर रस गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में- "मनहुँ वीर रस धरे शरीरा ९३" की तरह स्थित है । यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण कुवलयापीड़ नामक महाबलशाली गजराज को (जो कृष्ण को मारना चाहता था) रङ्गभूमि में भयङ्कर युद्ध कर उसे मार डालते हैं । ६. भयानक रस : किसी भयङ्कर वस्तु का दर्शन, व्याघ्र तथा चौरादि इस रस में आलम्बन होते हैं। किसी भयानक वस्तु का स्वर, तथा उसकी भयकारी चेष्टा उद्दीपन, काया-कम्प, स्वेद, श्रवण, आस्य शुष्कता आदि अनुभाव होते हैं । आश्रय के चित्त का 'भय' स्थायीभाव है । समीक्ष्य पुराण के द्वितीय अंश के अध्याय आठ के श्लोक सं० ४९ से ५२ तक भयानक रस का परिसर है । पराशर का कथन है कि 'दारुण तथा भयानक सन्ध्या काल के उपस्थित होने पर मन्देहा नातक भयङ्कर राक्षसगण सूर्य को खाना चाहते हैं........ सन्ध्या काल में उनका सूर्य से भीषण युद्ध होता है । प्रकृत स्थल पर भयानक राक्षसों का दिखलाई पड़ना भयकारी है । यहाँ स्थाई भाव भय है । आलम्बन सामान्य व्यक्ति है। I 1 द्वितीय अंश के अध्याय तेरह के श्लोक संख्या १४ से १८ तक भयानक रस का मूर्तिमन्त वर्णन है । यहाँ सिंह को देखकर भयभीत हिरणी का अत्यन्त मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है । चतुर्थ अंश अध्याय बारह के श्लोक - संख्या सत्रह में शत्रु राजा से भयभीत राजकुमारी शैव्या का उल्लेख मिलता है । ७. बीभत्स रस : इस रस का आलम्बन है दुर्गन्धमय मांस, रक्त तथा अस्थि आदि । रक्त, मांस की सड़न तथा दुर्गन्ध आना, पक्षी अथवा पशुओं द्वारा मांस को नोच-नोचकर खाना आदि उद्दीपन है । नाक काटेढ़ा करना, सिकोड़ना, तथा थूकना आदि अनुभाव है । बीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा होता है । समीक्ष्य महापुराण के पञ्चम अंश के अध्याय १४ के श्लोक सं० ४ तथा १३ में बीभत्स रस का अवलोकन किया जा सकता है। अरिष्टासुर की देह का पृष्ठ भाग गोबर तथा मूत्र से सना हुआ बताया गया है जो जुगुप्साजनक है । भगवान कृष्ण ने जब अरिष्टासुर (वृषभ रूप) की सींग उखाड़ ली फिर उसी सींग से उस पर आघात किया जिससे वह महादैत्य मुख से रक्त का वमन करता हुआ मर गया । पञ्चम अंश के अध्याय तीस के श्लोक सं० ३४ में भी बीभत्स रस की स्थिति है । पारिजात हरण का प्रकरण है । श्रीभगवान के साथ गरुड़ भी अपनी चोंच पंख और पंजों से देवताओं को मारते, खाते तथा फाड़ते फिर रहे थे । यह वर्णन बीभत्स का प्रत्यक्ष प्रमाण है । ८. अद्भुत रस : इस रस में किसी अलौकिक तथा आश्चर्य उत्पन्न करने वाला व्यक्ति या पदार्थ. आलम्बन, अलौकिक विष्णुपुराण में रस- योजना : एक समीक्षात्मक विवेचन For Private and Personal Use Only ૨૭

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