Book Title: Samipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरिवंशपुराण की विष्णुविषयक स्तुतियों का समीक्षात्मक परिशीलन वन्दना मिश्र हरिवंशपुराण का पौराणिक वाङ्मय में प्रमुख स्थान है। इस पुराण में पुराण के पञ्च लक्षण घटित होते हैं तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चतुर्वर्ग की प्राप्ति के सोपान परिलक्षित होते हैं । यहाँ चतुर्वर्ग में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की विशेष चर्चा आई है। हरिवंशपुराण की अनेक स्तुतियों में भगवान् विष्णु की यशोगाथा का कीर्तन मिलता है जो शान्तिकामी एवं मुमुक्षु को आनन्द प्रदान करती है । हरिवंशपुराण महाभारत का खिल भाग है । महाभारतोक्त विष्णु सहस्रनाम (अनुशासन पर्व अ. १४९) की प्रत्यक्ष छाप हरिवंशपुराण की विष्णुस्तुतियों में परिलक्षित होती है । विष् + न् के संयोग से निष्पन्न विष्णु शब्द देवत्रयी में परिगणित द्वितीय नाम है - 'ब्रह्मा, विष्णु, महेश' । विष्णु का दायित्व विश्व का पालन-पोषण करना है । विष्णु विश्व के कण-कण में व्याप्त हैं इसलिए वे विष्णु कहे जाते हैं । जयदेव ने गीतगोविन्द में विष्णु के दशावतारों का उल्लेख किया है। ये अवतार हैं मत्स्य, कूर्म, वाराह, नरसिंह, वामन, राम (परशुराम), राम (दाशरथि), कृष्ण, बुद्ध तथा कल्कि २ । ऋग्वेद में विष्णु की स्तुति करते हुए उन्हें बलशाली तथा सर्वत्र विचरणशील कहा गया है। यहाँ कहा गया है कि विष्णु ने अपने तीन डगों (पादन्यासों) से पृथ्वी सम्बन्धी लोकों को नाप लिया है । उनके तीन पादन्यास विश्व की सृष्टि, उसके स्थापन एवं धारण करने के साथ-साथ आश्रितजनों का पालन-पोषण भी करते हैं। स्तु + क्ति के संयोग से व्युत्पन्न स्तुति शब्द का आशय है गुणकीर्तन, सराहना तथा प्रशंसा आदि । प्रकृत स्थल पर स्तुति का सम्बन्ध विष्णु विषयक स्तुतियों से है । कालिदास ने रघुवंश में कहा है कि है प्रभु ! आपका चरित्र स्तुतियों से परे है " । विष्णु की स्तुतियाँ स्तोता को मानसिक तथा आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती हैं । भारतीय संस्कृति में देवस्तुति का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। हरिवंशपुराण में अनेक देवी-देवताओं की भावप्रवण स्तुतियाँ मिलती हैं, जिनमें आर्या की स्तुति (विष्णुपर्व अ० ३, वि०प० अ० ११२) श्री कृष्ण की स्तुति (वि० प० अ० ५१) (भविष्यपर्व अ० १११) (भ० प० अ० १३१), शङ्कर की स्तुति (वि० प० अ० ७२), (वि० प० अ० ७४) तथा विष्णु स्तुति (भ० प० अ० २६), (भ० प० अ० ६८, ८० तथा ८७) आदि प्रमुख हैं। इन स्तुतियों में भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार मानते हुए विष्णु की स्तुतियाँ की गयी हैं । अनेक स्थानों पर विष्णु के अवतारों की यथा नरसिंह, वराह, तथा वामन आदि रूपों की स्तुतियाँ हैं । एक स्थल पर ऋषि मार्कण्डेय हरिहर (विष्णु तथा शिव) में अभेद मानते हुए एकरूप दोनों देवों की स्तुति करते हैं (वि०प०अ० १२५) । हरिवंशपुराण ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश को एक ही तत्त्व के रूप में स्वीकार करता है । जि को एक ही तत्त्व के रूप में स्वीकार करता है । जिस प्रकार हिम, जल तथा उपल (ओला) एक ही जल के विभिन्न रूप हैं उसी प्रकार ये तीनों देव हैं । ★ शोधार्थिनी, सरस्वती शिशुमंदिर मार्ग, मु. पहेलनगर, पो. कादीपुर, जि. सुलतानपुर (उ.प्र.) २२८१४५ हरिवंशपुराण की विष्णुविषयक स्तुतियों का समीक्षात्मक परिशीलन ૧૯ For Private and Personal Use Only

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