Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 13
________________ करने वाले; चार कषाय के टालने वाले; पांच महाव्रतों के पालने वाले और पांच समिति व तीन गुप्ति की शुद्ध आराधना करने वाले । ऐसे ३६ गुण से सम्पन्न महापुरुष प्राचार्य कहलाते हैं। ... ४. उपाध्याय-उपाध्याय श्रमण वर्ग के शैक्षणिक कार्यों के संचालक होते हैं । ये ११ अंग, १२ उपांग, चरणसत्तरी एवं करणसत्तरी इन २५ गुणों से सम्पन्न व आगमों के पूर्णज्ञाता होते हैं । सूत्र व्याख्या के क्षेत्र में उपाध्याय का मत अधिकारी मत माना जाता है। उपाध्याय का कार्य स्वयं विमल ज्ञानादि प्राप्त करना तथा अन्य जिज्ञासुओं को द्वादशांगी वाणी का ज्ञान दे कर उन्हें मिथ्यात्व से सम्यक्त्व में स्थिर करना है। शास्त्र-सम्मत उपदेश व प्रवचन द्वारा लोगों को सम्यक्त्व में स्थिर रखना तथा जिनवाणी की. शास्त्र सम्मत व्याख्या करना ही उनका प्रमुख कार्य है। मतभेद की दशा में शास्त्रीय सत्य को जन-जन के मन में उतार कर मिथ्या मार्ग से बचाना उपाध्याय का मुख्य कार्य है। . ५. साधु-जो महापुरुष अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह . रूप पांच महाव्रतों को तीन करण तीन योग से पालन करते हैं और -: . श्रमरणोचित्त गुणो से युक्त होते हैं, वे साधनाशील. महापुरुष ही साधु कहलाते हैं। जो पांच समिति, तीन गप्ति का विधिवत पालन करते हए — मोक्ष मार्ग की राह में आगे बढ़ते रहते हैं, वे साधु हैं । साधु के २७ गुण होते हैं। उन श्रमणोचित्त गुणों से युक्त साधु को ही वन्दनीय साधु कहते हैं । ये २७ गुण निम्न हैं- . . · पांच महाव्रतों का पालन, पांच इन्द्रियों की विजय, चार कषायों पर विजय; भाव सत्य, करण सत्य, योग सत्य, क्षमावन्त, वैराग्यवन्त, मन समाधारणता, वचन समाधारणता, काय. समाधारणता, ज्ञानसम्पन्नता, दर्शन सम्पन्नता, चारित्र सम्पन्नता, वेदनीय सहिष्णुता एवं मारणतिक कष्ट सहिष्णुता । प्रश्न-१ नवकार मंत्र के पांच पदों में देव पद कितने व गुरु पद कितने हैं ? उत्तर- नवकार मंत्र में वंदितं पांच परमेष्ठी को दो भागों में विभक्त किया जा सकता हैं-देव पद व गुरु पद । अरिहंत व सिद्ध ये दो देव पद हैं तथा प्राचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीन गुरु पद ।' .. प्रश्न-२ अरिहंत और सिद्ध में क्या अन्तर है ? . . सामायिक - सूत्र १३

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