Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 30
________________ 9 तस्स उत्तरीकरणा-सूत्र तस्स उत्तरी करगणेरणं, पायच्छित करणेणं विसोही. कररणरणं विसल्ली करणेणं, पावारणं कम्मारणं निग्घायरपट्ठाए, ठामि काउस्सगं ॥.... अन्नत्य अससिएण, नीससिएणं, खासिएण, छीएणं, जमाइएण, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्त.. मुच्छाए। सुहुमेहिं : अंग-संचालेहि, सुहुमेहि खेल संचालेहि, सुहृमेहि दिहि-संचालेहि एवमाइएहि । आगारेहि, अभग्गो, अविराहियो, हुन्ज मे काउस्सगो। जाव अरिहंतारणं, भगवंतारणं, नमुक्कारेणं न पारेमि । तावकायं ठाणेणं .मोणेणं, झाणेरणं, ६ अप्पारणं ..वोसिरामि ॥... ... · तस्स .. - उसकी (दूषित पात्मा की) उत्तरी करगणं उत्कृष्टता के लिये : .. पायच्छित करणेणं प्रायश्चित करने के लिये विसोही करणेणं - विशुद्धि करने के लिये विसल्ली करणेणं . - शल्य रहित करने के लिये -[पावाणं कम्माणं निग्धायरणढाए] पावाणं . पाप कम्मा - कर्मों का निग्घायरपट्टाए .. नाश करने के लिये हामि करता हूँ काउस्सगं कायोत्सर्ग अन्नत्य इन क्रियाओं को छोड़ कर ऊससिएणं उच्छवास, ऊपर सांस लेने से नीतसिएणं निःश्वास, सांस छोड़ने से सामायिफ - सूत्र | ३०

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