Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 28
________________ प्रश्न-४ यह सूत्र इसी स्थान पर एवं प्रतिज्ञा ग्रहण करने से पूर्व ही क्यों ? उत्तर- पाप-विशुद्धि करने से पूर्व भगवान तथा गुरुदेव को वन्दन करने, उनका स्मरण कर मन को पवित्र बनाने व उनकी प्राना लेने की आवश्यकता है। साथ ही यह सौजन्य एवं शिष्टाचार का तकाजा भी है । अतः पालोचना के पूर्व नमस्कार मन्त्र व गुरु वंदन-मूत्र के पाठों को स्थान दिया गया है। .. इसके बाद जब साधक महापुरुषों का ध्यान और चिंतन मनन कर प्रतिज्ञा सूत्र में आवद्ध होता है तो यह आवश्यक है कि वह इसके पहले ही अपने मन मन्दिर को स्वच्छ बनालें । एक साधारण किसान भी खेत में बीज डालने से पूर्व खेत में रहे हुए कंकर, पत्थर, घास-फूस आदि को हटाकर उसे साफ एवं समतल . वनाता है । इसी भांति सामायिक भी एक आध्यात्मिक कृषि है। . प्रतिज्ञा सूत्र के वांचन द्वारा हृदय में साधना के बीज डालना है। इसके पूर्व साधक अपने आप को ईर्यापथ में लगे दोषों से मुक्त कर मन मन्दिर को स्वच्छ, एवं सम बनाने का उपक्रम करे इसी लक्ष्य से इस सूत्र को प्रतिज्ञा सूत्र में आवद्ध होने से पहले रखा है। प्रश्न-५ हिंसा किसे कहते हैं ? उत्तर- साधारण रूप से हिंसा का अभिप्राय किसी जीव को प्राण रहित कर देने से है, पर जैन धर्म की अहिंसा का दायरा अत्यन्त विस्तृत है । जैन धर्म के अनुसार किसी जीव की किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता में रुकावट करना भी आंशिक हिंसा है। हिंसा भले ही मानसिक हो, वाचिक हो या कायिक प्रत्येक प्रकार की हिंसा-हिंसा. ही है । अभियादि दस बोलों पर शांत, सहज तथा गहन चिंतन ही हिंसा की परिभापा के सम्बन्ध में इस बारीकी को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त कर देता है। प्रश्न-६ क्या मात्र मिच्छामि दुक्कडं' कह देने मात्र से पापों को विशुद्धि हो जाती है ? उत्तर- 'मिच्छामि दुक्कडं' शब्द कोई ऐसा तावीज या मन्त्र नहीं है जो बोलने मात्र से ही पाप-मुक्ति कर दे। पाप-मुक्ति के लिए 'मिच्छामि दुक्कडं' शब्द का उच्चारण ही पर्याप्त नहीं है। महत्वपूर्ण है इस शब्द के पीछे रही हुई भावना, इसके द्वारा व्यक्त होने वाला पश्चाताप । आचार्य भद्रबाहु ने 'मिच्छामि दुक्कडं' . की बहुत सुन्दर व्याख्या की है।. 'मि' त्ति मिउ-मद्दवत्ते, 'छ' त्ति दोसाण छादणे होई। सामायिक - सूत्र / २८

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