Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 62
________________ काल में पापों व दोषों से बचने का भरसक प्रयास करे। फिर भी साधक आखिर साधक ही है । साधनाकाल में कुछ दोप अन्ततोगत्वा लग ही जाते हैं। उनके लिये सामायिक पारते समय आलोचना की जाती है। इस प्रायश्चित विधान में अपने दोषों को कुरेद-कुरेद कर देखने की प्रवृति है. ऐसा नहीं है कि अपने दोपों को छिपाकर दूसरों पर उनको थोपने की वृत्ति या भावना हो । इस दोष-दर्शन प्रवृति का मनोवैज्ञानिक प्रभाव साधक की आत्मा पर पड़ता है और वह उत्तरोत्तर दोष रहित वनती जाती है। . इस पाठ में सामायिक व्रत में लगने वाले दूपणों का उल्लेख करते हुए इनके लिये प्रायश्चित किया गया है । व्रत चार प्रकार से दूषित हो सकता है । वे प्रकार हैं-अतिक्रम, व्यतिक्रम, अंतिचार, अनाचार । मन में शुभ भाव विनष्ट हो, उनके स्थान पर अशुभ भावों की उत्पत्ति तथा प्रकृत्य करने का संकल्प उदित होना अतिक्रम है । अकृत्य को करने के लिये साधन जुटाना व्यतिक्रम है। इससे आगे बढ कर अकृत्य को कार्य रूप में परिणत करने हेतु प्रागे वढना आदि अतिचार हैं व अकृत्य का सेवन करना अनाचार है। साधक को अनाचार सेवन कदापि नहीं करना चाहिए । उसको अतिचार तक के दोषों से भी वचने का प्रयास करना चाहिये। अतिक्रम और व्यतिक्रम जब तक मन में दृढता का अभाव है, सम्भव है। अधिक दुष्परिगमन की दशा में अतिचार भी लगना कदाचित् सम्भव है.। सामायिक के इस समाप्ति सूत्र में इन्हीं अतिचारों के सेवन की आलोचना की गयी है। अतिचारों की आलोचना के साथ अतिक्रम व व्यतिक्रम की आलोचना स्वतः हो जाती है । सामायिक व्रत के पांच अतिचार हैं। (१) मन दुप्परिणहाणे (मन दुष्प्रणिधान)-मन की सांसारिक भौतिक संकल्प विकल्प की ओर गति, सामायिक का प्रथम अतिचार है। (२) वय दुप्परिणहाणे (वचन दुष्प्रणिधान)-सामायिक के काल में विवेकशून्य, अशुभ, सांसारिक विपयों से संबंधित वचन बोलना, द्वितीय अतिचार है। (३) काय दुप्परिगहाणे (कायदुष्प्रणिधान)-शरीर की अस्थिरता व कुचेष्टायें, विवेक रहित हलन-चलन आदि तीसरा अतिचार है। . . ... (४) सामाइयस्स सइ अकरण्या (सामायिक स्मृति-विभ्रम)--यह भूल जाना कि मैं सामायिक में हूं या खुला; यह चतुर्थ अतिचार है। - (५) सामाइयस्स अगवट्टियस्स करणया (सामायिक अनवस्थित) सामायिक में बैठने पर भी सामायिक में चित्त न लगना व अंततः समय सामायिक - सूत्र / ६२

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