Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 61
________________ । ।। न सामावरियव्वा ....- आचरण करने योग्य (उपादेय) नहीं है . . ....... तंजहा.. . - - वें. इस प्रकार हैं। मरण दुप्पणिहाणे मन की सदोष प्रवृति, अशुभ मन वय दुप्परिणहारणे... वचन की सदोप प्रवृति, अशुभ वचन काय दुप्पणिहाणे : - शरीर की सदोष प्रवृति-अशुभ काय योग सामाइयस्स . .. - सामायिक की . . . सइ प्रकरणया ...... - स्मृति नहीं रखना .. .. सामाइयस्स . . सामायिक को ... अगवट्ठियस्स करण्या - अन्यवस्थित करना तस्स मिच्छामि दुक्कडं। उस संबंधी मेरा पाप (दुष्कृत) मिथ्या . . . . . . होवे .... .. सामाइयं .. . - सामायिक को - सम्मं . सम्यक प्रकार से : काएरणं शरीर से. न फासियं स्पर्श न किया हो . पालन न किया हो . न तोरियं पूर्ण न किया हो । न किट्टियं कीर्तन न किया हो न सोहियं शुद्ध न किया हो. न पाराहियं --- आराधन न किया हो श्रारणाए . वीतराग देव की आज्ञानुसार . अणुपालियं ... अनुपालित न भवइ " - न हुया हो .. " . .. -: उस संबंधी मि ...... .. - मेरा .. . - दुष्कृत ...: मिच्छा ...... - मिथ्या हो । - सविधि सामायिक व्रत ग्रहण के पश्चात् साधक निश्चित काल के लिये, .. स्वीकृत सामायिक व्रत की सम्यक् प्रतिपालना में लीन हो जाता है । इस समय में वह अध्ययन, मनन-चिन्तन और स्तुति व ध्यानादि द्वारा सर्वतोमुखी साधना करता है। निश्चित काल व्यतीत हो जाने पर साधक समाप्ति सूत्र द्वारा यह व्रत पारता है । साधक का यह कर्तव्य है कि वह सामायिक .. सामायिक-सूत्र / ६१ न पालियं ...

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