________________
निवृत्त होऊ ऐसे भाव लाना, सामायिक में बैठे-बैठे घड़ी हिलानां, मिनटमिनट गिनना व व्रत पूर्ण होते ही बन्धन मुक्त पशु की तरह भागना अवहुमान दोष है।
• वचन के १० दोष कुवयरण सहसाकारे, सछंद-संखेव-कलहं च । ..
विगहा विहासोऽसुद्ध निरवेक्खो मुणमुरणा दोसा दस ॥ १. कुवयरण (कुवचन)-सामायिक काल में कुत्सित अर्थात् अश्लील, गन्दे या कपाय युक्त वचन वोलना कुवचन दोष है । . . . . . .
२. सहसाकारे (सहसाकार)-साधक को समय-समय और परिस्थितियों का विचार कर ही वाणी का ताला खोलना चाहिए । विना विचारे जो मन में आ जाय वैसा ही बोल देना सहसाकार दोष है।
३. सछंद (स्वछंद)–सामायिक में राग, द्वेष, विषय-विकार वर्द्धक मनमाने गन्दे गीत गाना एवं निरंकुश होकर बोलना स्वछन्द दोष है ।
४. संखेव (संक्षेप)-सामायिक या अन्य किसी सूत्र के पाठों को संक्षेप करके अपूर्ण उच्चारण करना, यथार्थ रूप में न पढ़ते हुए कुछ अक्षर छोड़ देना, कुछ पढ़ लेना, यह जिनवाणी का अपमान व सामायिक व्रत का दोष है।
५. कलह (कलह)-सामायिक में कलह पैदा करने वाले वचन बोलना जैसे मर्मभेदी वचन वोल कर पुराने क्लेश जागृत करना तथा नये झगड़े लगाना कलह दोष है।
६. विगहा (विकथा)-सामायिक एक विशुद्ध आध्यात्मिक अनुष्ठान है जिसमें सिर्फ अात्मा सम्बन्धी चिन्तन, मनन व कथा करनी चाहिए । संसार सम्बन्धी कथा करना दोष रूप है। सांसारिक कथाओं को हमारे यहां विकथा कहा गया है । ये चार हैं(i) स्त्री कथा-स्त्रियों की, राज-राजेश्वरियों के रूप, सौन्दर्य व
शृंगारादि की चर्चा करना। (ii) राजकथा-राजनैतिक चर्चा, वाद-विवाद करना । ... (iii) भक्त कथा-भोजन खाने-पीने सम्बन्धी वातें करना। ..
(iv) देश कथा-देश-देशान्तर, ग्राम, नगर आदि की चर्चा करना ।
७. विहासो (हास्य)-सामायिक में हंसी ठद्वा करना, किसी की मजाक उड़ाना, व्यंग कसना, कौतुहल करना व किसी को खिसियाने पर मजबूर करना हास्य दोष है। .
सामायिक - सूत्र / ६८