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..... असुद्ध (अशुद्ध)--सामायिकादि सूत्र पाठों में ह्रस्व के स्थान पर . दीर्व, दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व, कम ज्यादा मात्राएं बोलना, शुद्धि की
ओर ध्यान दिये बिना ही लापरवाहीपूर्वक उच्चारण करना अशुद्धि दोष है। ... ... ... ... ... .
६. निरवेक्खो (निरपेक्ष)-शास्त्र के दृष्टिकोण का विचार न करके बोलना, परस्पर असंगत विरोधजनक और दूसरों को दुःख उपजाने वाले वाक्य कहना तथा जिनवाणी की उपेक्षा करना निरपेक्ष दोष है । : १०. मुणभुणा (मम्मण)--गुनगुनाते हुए इस प्रकार बोलना जिससे । सुनने वाला पूरी तरह न समझ सके, मम्मण दोष है । .. .. .......: . . . . . . काया के बारह दोष
'कुप्रासणं चलासणं चलदिछी,, सावज्जकिरिया लम्बरणा कुंचरण पसारणं । - अालस मोडण मल विभासणं, निद्रावेयावच्चति वारस काय दोसा ।। ... १. कुमासरण (कुप्रासन)-सामायिक में पैर पर पैर चढ़ा कर बैठना, टेडा-मेढ़ा या अन्य किसी अशिष्ट आसन से बैठना, गुरुजनों के प्रति पीठ करके बैठना आदि 'कुआसन' दोष है। ....२. चलासरण (चलासन)-चलासन दो प्रकार से हो सकता है। . स्वभाव की चपलता से विना कारण बार-बार आसन. बदलना, उठना
बैठना जीवघात का कारण है अतः दोष रूप है। इसके अतिरिक्त डगमगाते • हुए शिला, पाट आदि पर बैठने से उनके नीचे स्थित जन्तु कुचल जाते हैं;
तथा जिस स्थान पर बैठक से बार-बार उठना पड़े, ऐसे स्थान पर बैठना : भी उचित नहीं है व दोष रूप है। ... ३. चलदिछी (चल दृष्टि)-चंचल दृष्टि रखना, विना कारण ही इधर-उधर देखते रहना व अपनी नेत्र इन्द्रिय को वश में न रखना ये चल दृष्टि दोष में सम्मिलित हैं। .. .: ४. सावज्जकिरिया (सावध क्रिया)-सामायिक के समय में सावध याने पापकारी या वर्जनीय कार्य करना सावध दोष है। जैसे हिसाव-लेखन, सिलाई, कसीदा, अचित पानी से लेपन या स्नान कराना, बच्चे को खिलाना, गोद में लेना आदि गृह कार्य यह समझाते हुए कि इनमें किसी प्रकार की हिंसा नहीं होती है, करनां सावध क्रिया दोष है।
५. पालम्बरण (आलम्बन)-विना किसी कारण के भीत, स्तम्भादि का सहारा लेकर वैठना आलम्बन दोष है। ऐसा करने से . भीत,
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सामायिक.- सूत्र / ६९