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स्तम्भादि के पाश्रित अनेकशः जीवों की घात होती है तथा निद्रा व प्रमादादि दोपों की वृद्धि सम्भव है।
६. आकुंचन पसारणं (याकूञ्चन प्रसारण)-बिना किसी विशेष प्रयोजन के हाथ पैर व शरीर के अंगों को वार-वार फैलाना व सिकोड़ना 'पाकुञ्चन प्रसारण' दोप है। __७. पालस (आलस्य)-सामायिक में अंग मरोड़ना, जंभाइयां लेना, शरीर को इधर-उधर पटकना आदि आलस्य के उदाहरण हैं। . .
८. मोडन (मोड़न)--सामायिक में बैठे हुए हाथ पैर की अंगुलियों तथा शरीर के अन्य भागों को चटकाना मोड़न दोप है। ___६. मल-सामायिक करते समय शरीर पर से मैल उतारना 'मल' दोष है।
१०. विमासरणं (विमासन)-हथेली पर सिर रख कर, जमीन की तरफ दृष्टि रख कर या गाल पर हाथ लगा कर शोकग्रस्त, चिन्ता-निमग्न व्यक्ति की तरह चिन्ता के पासन से वैठना विमासन दोष है ।
११. निद्रा (निद्रा)-सामायिक व्रत में बैठे-बैठे ऊंघना, नींद लेना आदि निद्रा दोष है।
१२. वेय्यावच्चति (वैय्यावृत्य)-सामायिक में दूसरों से अपनी सेवा करवाना, हाथ पैरों के मालिश करना या दूसरे अव्रती की सेवा करना आदि वैय्यावृत्य दोष है । व्रतधारी की सेवा की जा सकती है । __उपर्युक्त दोष सामायिक की साधना को दूषित करते हैं। अतः सुज्ञ साधकों को इनका यथावत् स्वरूप समझ कर इनसे बचने का प्रयास कर, मन, वचन व काया रूगी त्रिविध शक्ति को उत्कृष्ट संवर-धर्म की उपासना में लगाना चाहिए।
सामायिक - सूत्र / ७०