Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 72
________________ वस्तुतः समता ही सामायिक है । विपम भाव से स्वभाव की ओर परिणति , ही सामायिक है। अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही स्थितियों को समान मानना, दुःख विमुक्ति या सुख प्राप्ति हेतु अनुचित ऊहापोह न करना, यही तो समता है। सामायिक का पाराधक संकट की घड़ियों में भी भयभीत नहीं होता, वह तो यही चिन्तन करता है कि एगो मे सासनी अप्पा, नारण-दसण संजुनो। .. ... ... .. सेसा मे वाहिराभावा, सब्ये संजोग-लपखरणा ॥ . अर्थात् ये पौद्गलिक संयोग-वियोग प्रात्मा से भिन्न हैं। इनसे न तो आत्मा का हित ही हो सकता है और न अहित ही। सामायिक के कई. अन्य अर्थ भी हो सकते हैं. .. १. शम से शमाय बनता है । शम का अर्थ है कपायों का उपशम । याने सामायिक वह क्रिया है जिससे कषायों का उपशम हो । " उपशम हा . . २. "समानि अयनं समायः"-मोक्ष प्राप्ति के साधन भूत रत्नत्रय-ज्ञान दर्शन, चारित्र ये 'सम' कहलाते हैं, इनमें प्रवृत्ति करना सामायिक है।. __.३. "सामे अयन" सामस्य वा प्राय:-सामायः अर्थात् सब जीवों पर मैत्री भाव रखना ही सामायिक है। .. ४. सम् याने सम्यक् अर्थात सह पाचरण में अयन-गमन ही सामायिक है। - ५. "समये भवं अथवा समये अयनं" से समय पर की गयी साधना सामायिक है। सामायिक को सावद्ययोगविरति भी कहा गया है। रागद्वेष रहित दशा में साधक हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह आदि सम्पूर्ण पापों का त्याग करता है। उसकी प्रतिज्ञा भी यही होती है. "सावज्जं जोगं पच्चक्खामी" अर्थात् “मैं सावध योग का त्याग करता है"। भगवती सूत्र में स्थविरों ने आत्मा को ही सामायिक कहा है। (आया समाइए) । कषाय के विकारों से परिशुद्ध स्वरूप ही आत्मा का निजरूप है । समभाव ही प्रात्मा का स्वभाव है । इनमें रमण करना ही तो सामायिक है । अर्थात् आत्मो के निजरूप की किंवा आत्मा की प्राप्ति ही सामायिक है। सामायिक की दृष्टि से दो भेद हैं। (१) आगार सामायिक व (२) अरणगार सामायिक । श्रावक की सामायिक दो घड़ी के मर्यादित समय के लिये व दो करण तीन योग से होती है; अतः इसे आगार सामायिक कहा गया है। साधु की . सामायिक -सूत्र /७२

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