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- वस्तुतः सामायिक कर्म रोग के विनाश के लिए रामवाण औषधि है। - समभाव रूप सामायिक में संवर एवं निर्जरा दोनों का ही सुन्दर समन्वय है। संवर नए कर्मों के आवागमन पर रोक है तो निर्जरा पूर्व संचित कर्मों का
क्षय । करोड़ों जन्मों तक निरन्तर उन तपस्या करने वाला साधक जिन .. कर्मों का क्षय नहीं कर सकता उनको सामायिक का साधक मात्र आधे क्षण में ही करने में समर्थ है ! तभी तो प्राचार्यों ने कहा है.. . 'सामायिक-विशुद्धात्मा, सर्वथा घातिकर्मणः।
क्षयात्केवलमाप्नोति, लोकालोकप्रकाशकम् ॥' ।
.. अर्थात् सामायिक से विशुद्ध वना हुआ आत्मा ज्ञानावरणादि चारों धनघाती कर्मों का मूलतः नाश कर सर्व लोकालोक को प्रकाशित करने वाले केवल ज्ञान को प्राप्त कर लेता है।
उपर्युक्त संक्षिप्त विवेचन से स्पष्ट है कि सामायिक एक अद्भुत साधना है। यह उत्थान का अलौकिक राजमार्ग है। सामायिक कोई ऐसी वस्तु नहीं जो मोल देकर क्रय की जा सके । दुनियां की कोई सम्पदा, राज्य या पद इसको क्रय नहीं कर सकता । सामायिक स्वयं ही अपने आपका मूल्य है । अर्थात् इसे वही प्राप्त कर सकता है जो इसकी साधना करे। तभी तो भगवान ने नरक के बंधन टालने को समुत्सुक एवं पूणिया श्रावक को सामायिक का मूल्य जानने को तत्पर सम्राट श्रेणिक से कहा था, 'राजन्! क्या तुम्हारे पास इतनी स्वर्ण मुद्रायें हैं कि इसका ढेर सूर्य व चन्द्र को छ लें। अगर इतना है तो भी यह सामायिक की दलाली के लिये भी कम होगा । भगवान द्वारा मोल सुना और अपने राज्य व वैभव में मदान्ध नप
का नशा न जाने कहां काफूर हो गया। - ऐसी अनमोल दिव्य साधना है यह । जिनवाणी का हमारे पर महान
उपकार है जिससे हमें इसका महत्व जानने का सौभाग्य प्राप्त हया है तो क्यों न हम भी इस ओर अपने कुछ चरण आगे बढायें व अपनी मंजिल को पाने की तैयारी करें। सतत् साधना एक दिन अवश्य ही शुद्ध सामायिक की प्राप्ति करायेगी, भले ही प्रारम्भ में मन की चंचलता वाधक ही सिद्ध क्यों न हो । यही एक मात्र ऐसा उपाय है जो आने वाले
समाज में धार्मिक निष्ठा, चारित्रिक दृढ़ता व मानवीय विश्वास तथा अन• शासन वनाये रख सकता है । यही विश्व शांति का सच्चा उपाय है । तो
ग्राएं, हम सामायिक की ओर बढ चलें।