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• सामायिक के बतीस दोष
सामायिक समस्त आत्मिक साधना का सार है । यह एक अलौकिक अद्भुत साधना है जिसे करके श्रावक भी अल्प समय के लिए श्रमरणवत् बन जाता है । सामायिक वह अमोघ अस्त्र है जिसके धारण करने से समस्त व्याधियां नष्ट होकर जीवन में एक अपूर्व आनन्दानुभूति होती है। यही वह अमर साधना है जिसके कि नित्य प्रति सम्पादन से जीवन आध्यात्मिक ज्ञान की निधि से जगमगाने लगता है, उसमें अद्वितीय कान्ति चमकने लगती है । पर यह तभी होता है जबकि साधना समग्र हो, दोष रहित हो क्योंकि मन, वचन, कायादि योगों द्वारा लगने वाले दोष ही वे छेद हैं जो कि इस आध्यात्मिक लक्ष्मी को आत्म निवास में नहीं रहने देते।। - मन, वचन और काया ये कार्य सम्पादन के तीन साधन हैं। यदि इनका सदुपयोग किया जाय तो प्रात्मा में अद्भुत शक्ति का संचार हो सकता है और यदि इन्हीं को सांसारिक प्रवत्तियों में लगाया जाय तो आत्मा पतन के गर्त में गिर सकती है । अतएव इस त्रिविध शक्ति को व्यर्थ न गंवा कर सामायिक रूपी अलौकिक धन की उपलब्धि से सफल बनाने में ही बुद्धिमत्ता है । त्रिविध शक्ति को सही मार्ग में प्रवृत्त करें, इसके पूर्व यह जान लेना आवश्यक होगा कि इन शक्तियों के दुरुपयोगजन्य दोप कौन-कौन से हैं, जो. हमारी साधना को मलिन कर सकते हैं।
ये दोष बतीस हैं । मन, वचन, काया के अनुसार इनका तीन भागों में वर्गीकरण किया गया है।
• मन के १० दोष अविवेग जसोकित्ती, लाभत्थी गव्व-भय-नियारपत्थी।
संसय रोस अविरणो, अवहुमारणए दोसा भरिणयव्वा ॥ १. अविवेग (अविवेक)-सामायिक करते समय-समय असमय का विचार न रख कर अविवेक से सामायिक करना और शरीर एवं कुटुम्ब की बाधा का विना ख्याल किये व्रत करना अविवेक दोष है। सामायिक के स्वरूप व उद्देश्य को यथार्थ रूप में न समझना भी अविवेक दोष है। . २. जसोकित्ती (यशोकीति)-यश-कीति की कामना से प्रेरित होकर सामायिक करना अथवा सामायिक में आत्म प्रशंसा की चाह करना
___सामायिक - सूत्र /६६