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परिसमाप्त होने से पूर्व हो सामायिक की समाप्ति कर लेना, सामायिक
का पंचम अतिचार है। .. . . ... जहां सूत्र के प्रथम भाग में अकृत्य सेवन की आलोचना की गयी है,
वहां द्वितीय भाग में कृत्य के असेवन की भी आलोचना की गयी है। सामायिक में प्रभु का कीर्तन करना चाहिये तथा इसका सम्यक् शुद्धरीति से अाराधन किया जाना चाहिये । सामायिक का समय पूर्ण होने तक वीतराग देव की आज्ञा से व्रत का पवित्र भावना के साथ अनुपालन करते हुए यह प्रयास करना चाहिए कि सामायिक का व इसकी भावना का शरीर एवं जीवन के साथ स्पर्श हो, सम्पर्क हो । . . ... .
सामायिक - सूत्र / ६३