________________
विशेष-(२९, ३०, ३१, ३२) में वर्णित तीर्थंकर भगवान के ये गुण अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । ये विशेपण तीर्थंकर पद की विशिष्टताओं के द्योतक हैं । स्वयं अपना कल्याण करना तथा अन्यों का भी कल्याण करना स्व पर के उत्थान की यह भावना जैनत्व के भव्य उदात्त आदर्श को भलीभांति अभिव्यक्त करती है । धर्म प्रचार एवं जनकल्याण से भगवान को नः तो कोई व्यक्तिगत लाभ होता है और न ही उन्हें इसकी अपेक्षा है। उनके लिए यद्यपि कोई साधना शेष नहीं है, तथापि वे कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् भी मात्र विश्व-करुणा की भावना से तीर्थकर नाम कर्म के भोग हेतु जनता को सन्मार्ग का उपदेश देते हैं । ................... ..
३३. सव्वन्तरण (सर्वज्ञ)-तीर्थंकर सर्वज्ञ हैं। वे चर, अचर, भूत, भविष्यत, वर्तमान के समस्त पदार्थों के ज्ञाता हैं । उनके लिए कुछ भी जानना शेष नहीं है। .. ... .... .....
३४. सव्वदरिसीण (सर्वदर्शी)-तीर्थकर भगवान सर्वदर्शी हैं। विश्व के समस्त रूपी-अरूपी पदार्थों को वे हस्तामलकवत देखते हैं।
.. ३५. सिवमयलमल्यमांतमक्खयमवाबाहमपुरणरावित्ति-सिद्धिगइ नाम धेयं ठाणं संपत्तारण (संपाविउकामारणं) तीर्थंकर भगवान मोक्ष को प्राप्त करने वाले हैं, ऐसा वर्तमान तीर्थंकर की दृष्टि से कहा जा सकता है। जो तीर्थकर मोक्ष में पधार गये हैं, उनके लिए 'ठाणं संपत्तारणं' अर्थात् मोक्ष स्थान को प्राप्त कर चुके ; शब्द प्रयुक्त किया गया है। " . इस पद में यह स्पष्ट किया गया है कि यह मोक्ष स्थान केसा है। मोक्ष की कतिपय विशेषताएं जो यहां व्यक्त की गयी हैं, निम्न है-... (अ) सिवम्
- कल्याणकारी (आ) अयलम् - अचल, स्थिर. .. (इ) अरुयम्
रोग रहित . . (ई) अरणंतम्
अनन्त - अन्त रहित (उ) अक्खयम् - - अक्षय - अविनाशी (ऊ) अव्वावाहम् - अव्यावाध - बाधा रहित. ..... (ए) अपुणरावित्ति - पुनरागमन से रहित । सिद्ध गति में
जाने के बाद आत्मा को पुनः संसार में आने व भटकने की कतई आवश्यकता नहीं है यह ऐसा स्थान है जहां जीव जाता
तो है पर वहां से पुनः कोई अाता नहीं। ३६. जियभयारणं (भय विजेता)-संसार में जन्म, जरा और मृत्यु के महान भय हैं। अरिहंत प्रभु ने इन पर विजय प्राप्त कर ली है और वे सर्वथा भयों से मुक्त हो चुके हैं। ...
सामायिक - सूत्र / ५८