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४. चौबीस भगवान की जो चौथी विशेषता बताई गयी है वह है अरिहंत । अरिहंत का अर्थ है शत्रुओं का हंता। केवली भगवान घाती कर्मादि अात्मिक शत्रुओं का नाश करने वाले हैं अतः वे अरिहंत कहलाते हैं। __ प्रथम गाथा में भगवान के गुण दर्शाकर सूत्रकार ने द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ गाथा में चौवीस ही तीर्थंकर भगवान के नामों का उल्लेख किया है। इसमें सभी तीर्थंकरों के एक-एक नाम का ही उल्लेख है पर नवमें . सुविधिनाथजी के एक द्वितीय नाम पुष्पदंत का भी उल्लेख है। चरम तीर्थंकर महावीर का यहाँ वर्द्धमान नाम दिया है।
गाथाओं में भक्त पुन: भगवान की गुण-पूजा करता है तथा यह कामना अभिव्यक्त करता है कि ऐसे जो जिनवर हैं वे मुझ पर प्रसत्र होवें, तथा मोक्ष प्रदान करें।
अगली गाथानों में भगवान की जिन विशेपतानों का उल्लेख किया गया है, वे निम्न हैं
५. विहुयरयमला-ग्रात्मा अनन्त ज्ञान के प्रकाश से पालोकित है । पर इस पर पाप मल लगा हुआ है जिससे इसकी तह में विद्यमान ज्ञान ज्योति हमें दिखायी नहीं देती। तीर्थंकर भगवान इस पाप मल से रहित हैं अतः उन्होंने अपना स्व स्वरूप प्रकट कर लिया है।
६. पहीरगजरमरणा-विश्व में सबसे बड़े भय दो हैं-जरा और मृत्यु । यह भय उन्हीं को है जिनके अभी कर्म शेष हैं । केवली भगवान सिद्ध होकर इन कर्म बन्धनों से मुक्त हैं, अतः स्वतः ही वे इस जरा व. मृत्यु के रोग से मुक्त हैं । वे न तो कभी वृद्ध होते हैं और न-ही उन्हें अब कभी मरना है । वे इस जन्म-मरण के चक्र से परे हो गये हैं । . . . . . . . . . .
७. लोगस्स उत्तमा-चौवीस ही तीर्थंकर लोक में उत्तम हैं। वे मानवों में श्रेष्ठ व ज्येष्ठ हैं । लोक में उनकी वरावरी और कोई नहीं कर सकता।
८. कित्तिय वंदिय महिया-तीर्थंकर भगवान मेरे द्वारा कीर्तित, वंदित व पूजित हैं । अर्थात् मैं उनका कीर्तन, वंदन व पूजन करता है। मन से उनके नाम व गुणों का स्मरण कीर्तन है । मुख से याने वचन से उनके नाम एवं गुणों का स्मरण वंदन है तथा उन्हें पूज्य, स्मरणीय व स्तवनीय मान कर पंचांग नमा कर नमस्कार करना पूजन है । पूजन से यहां तात्पर्य द्रव्य पूजा से नहीं वरन् भाव पूजा से है। यहां द्रव्य पुष्पों की आवश्यकता नहीं क्योंकि वे सजीव हैं वरन् सद्भाव रूप गुण पुष्पों की आवश्यकता है। हमारे देव