Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 38
________________ ही उसका ध्यान प्रभु भक्ति की ओर जाता है और वह शुद्ध वुद्ध परमात्मा का स्मरण, चिन्तन व कीर्तन करता है । यह स्मरण, चिन्तन, कीर्तन का पुनीत कार्य प्रस्तुत चतुर्विंशतिस्तव द्वारा किया जाता है। इस सूत्र के द्वारा भक्त भगवान के प्रति अपने भक्ति भाव का प्रदर्शन करता है । जैन समाज में इस सूत्र को याने लोगस्स को अत्यन्त श्रद्धा व महत्त्व का स्थान दिया गया है । यह भक्ति साहित्य की एक अमर एवं प्रलौकिक रचना है । भक्त साधक जब इसका पाठ करता है तो उसका हृदय भक्ति. रस से आप्लावित हुए बिना नहीं रहता । वह अनुभूति निश्चय ही अलौfor श्रानन्दयुक्त होती है जबकि भक्त अपने प्रभु की स्तुति में अपने आपको भूल कर उन्हीं के चरणों में समर्पित कर देता है | लोगस्स - सूत्र में वर्तमान चौवीसी के चौबीस परम उपकारी वीतराग तीर्थङ्करों की स्तुति की गयी है। भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक चौवीसों तीर्थङ्कर हमारे इष्टदेव हैं । जिन्होंने विश्व को धर्म का मार्ग दिखलाया है अहिंसा और सत्य की राह दर्शायी, ज्ञान दर्शन की अनन्त ज्योति दिखलायी तथा इस संसार सागर से तिर कर उन्हीं के सम कर्ममुक्त हो, अपना कार्य सिद्ध करने की प्रेरणा दी । अतः हम पर उनका महान् उपकार है । इसलिये उनकी स्तुति करना और स्मरण करना हमारा कर्त्तव्य है | महापुरुषों का स्मरण हमारे हृदय को पवित्र बनाता है। वासनाओं की शान्ति को दूर कर प्रखण्ड आत्म-शान्ति का प्रानन्द देता है । भगवान का नाम सांसारिक लालसाग्रों एवं विषय-वासनात्रों की अमोघ औषधि है | भगवान के नाम में ग्रपार, ग्रसीम वल हैं । इसके द्वारा भक्त क्या प्राप्त नहीं कर सकता ? भगवान का निष्ठापूर्वक नाम लेते ही हमारे सामने उनका दिव्य रूप, उनके अनन्त ज्ञानदर्शनादि गुरंग, प्राणीमात्र के कल्याण की करुण भावना व महत्ती दया यादि हमारे सामने प्रस्तुत हो जाती हैं । मन का कैमेरा जिस प्रोर अभिमुख होता है, तत्क्षरग वैसे ही भाव - मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं । वैश्या का नाम मन में विकारों की स्मृति कराता है तो सती का नाम लेते ही सदाचार की महिमा पर मस्तक स्वतः ही निष्ठा, श्रद्धा व पवित्र भावना से झुक जाता है । यदि पापियों का चिन्तन मन में पापों की रील प्रारम्भ कर देता है तो महापुरुषों का नाम स्मरण, उनकी स्तुति व कीर्तन भी मन को पवित्र बनाये विना नहीं रह सकती । अतः भगवान के नाम को केवल जड़ अक्षरमाला ही समझना भ्रान्ति है । ये अक्षर द्रव्य .

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