Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 41
________________ श . .. वीतराग एवं निरंजन हैं तो उनकी पूजा भी कितनी शुद्ध, भावमयी व . .आदर्श हैं। जरा इसकी झांकी तो देखिये...... 'ध्यान धूपं मन पुष्पं, पंचेन्द्रिय हुताशनं । ... . . . क्षमा जाप संतोष पूजा, पूजो देव निरंजनं ।' चंदेसुनिम्मलयरा-तीर्थंकर भगवान चंद्र से भी अधिक निर्मल है। उनकी कीर्ति भव्य जीवों को चंद्र किरणों से भी अधिक सुखद है । चन्द्र की धवल प्रभा में तो कालिमा का दाग है पर भगवान का निर्मल ज्ञान प्रकाश - पूर्ण है, उस पर किसी प्रकार की कालिमा का प्रावरण नहीं है। ... .... १०. प्राइच्चेस अहियं पयासयरा-तीर्थकर भगवान सूर्य से भी अधिक ... प्रकाश करने वाले हैं । सूर्य तो द्रव्य अन्धकार को ही दूर करने में समर्थ है जिसमें भी उसके प्रकाश पर कभी ग्रहण भी लग सकता है। पर केवली महाप्रभू विश्व से अज्ञान तिमिर को हटा कर ज्ञान के दिव्य प्रभाव से समूचे लोक को आलोकित करने वाले हैं। उनका ज्ञान प्रकाश असीम व. अव्यावाध है। ११. सागरवर गंभीरा-तीर्थंकर भगवान सागरवत गम्भीर हैं। जिस 5. प्रकार सागर (समुद्र) में अनेकानेक नदी, नाले आदि मिलते हैं फिर भी ... उसमें से पानी नहीं छलकता इसी प्रकार भगवान के भी अनुकूल प्रतिकूल कितने ही परिपह क्यों न आने पर वे किंचित् मात्र भी चलायमान नहीं ....... होते हैं । जैसे भगवान महावीर ने चन्द्रकौशिक, संगमदेव, गो शालक आदि . . के महान उपसर्गों को सहन किया था। ..... .......: ... .. प्रभु-स्तुति के साथ ही साथ साधक कुछ कामनाएं अभिव्यक्त करता है । ......१. तित्थयरा मे पसीयंतु-भक्त यह प्रार्थना करता है कि ऐसे तीर्थंकर देवाधिदेव मेरे पर प्रसन्न हों। यद्यपि तीर्थंकर भगवान राग-द्वेष से रहित हैं अतः उनके किसी पर प्रसन्न या अप्रसन्न होने का सवाल ही नहीं उठता; तथापि ऐसी प्रार्थना की गई है। यह औपचारिकता है। इससे हममें सत् कर्म साधन की योग्यता आती है और हममें यह योग्यता पाना ही .. तीर्थंकरों का प्रसन्न होना माना गया है। ...... ..... २. प्रारुग्गल्याने रोग रहित होना । रोग दो प्रकार के होते हैं। एक द्रव्य रोग और दूसरा भाव रोग । ज्वरादि द्रव्य रोग हैं। कर्म ही भांव रोग है जिससे समूचा संसार संत्रस्त है। भक्त भगवान से 'आरुग्गदितु' कह कर कर्म रोग से मुक्ति प्राप्त करने की अभिलाषा अभिव्यक्त करता है। द्रव्यं रोग जो कर्म रोग के कारण उत्पन्न होते हैं, कर्म रोग के समाप्त होने पर स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। - सामायिक - सूत्र | ४१

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