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की जाती है । भगवान को तो ऑत्मिक गुण ही प्रिय हैं। उनका समूचा जीवन ही इनके विकास के लिये समर्पित होता है; देखिये
प्राचार्य हरिभद्र ने भगवान वीतराग के चरणों में कैसे सुन्दर पुष्प ...... समर्पित किये हैं
'. 'अहिंसा सत्यमस्तेयं, ब्रह्मचर्यमसङ्गता।
गुरुभक्तिस्तपोज़ानं, सत्पुष्पाणि प्रचक्षते ॥' देव-पूजा का सच्चा स्वरूप निम्न पद में दृष्टव्य है'. 'ध्यान धूपं मन पुष्पं, पंचेन्द्रिय हुताशनं ।
क्षमा जाप सन्तोष पूजा, पूजो देव. निरंजन ॥ भक्त हृदय कवि ने अपने आराध्य की अर्चना हेतु कितने अलौकिक अात्मीय अनुभूतिदायक गुण पुष्पों का चयन किया है। प्रश्न-३ तीर्थकर भगवान अरिहंत हैं। प्रस्तुत सूत्र में उन्हें सिद्ध क्यों कहा? उत्तर जो भूत पर्याय के तीर्थंकर थे वर्तमान में वे सिद्धगति को प्राप्त कर
चुके हैं अपने समय विशेष की दृष्टि से भी वे चार घनघाती कर्मों
का क्षय कर चुके होते हैं । अतः शेष चार अघाती कर्म उनके लिए . . : वाधा रूप नहीं होते । चार घनघाती कर्मों का क्षय होते ही उनका
संसार समाप्त प्रायः सा होता है, इस प्रकार भावी सिद्धत्व का वर्तमान में उपचार करके भी कहा जा सकता है। अतः उन्हें . सिद्ध कहना अयुक्तिसंगत नहीं कहा जाता।
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... सामायिक-सूत्र /४३