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: इरियावहिय-सूत्र द्वारा आलोचना, तस्स उत्तरी-सूत्र से विशिष्ट शुद्धि . व लोगस्स द्वारा भगवत् स्तुति करके साधक जब अपनो आत्म भूमि को.
राग-द्वेष रहित समतल, साधना योग्य बना लेता है, तब वह आध्यात्मिक
साधना का इस प्रस्तुत सूत्र द्वारा बीजारोपण करता है। .. ... सामायिक ग्रहण करने का पाठ यों तो बहुत संक्षिप्त है, पर उसकी ... पूर्व भूमिका में जो. अन्य चार पाठ पाये हैं उनसे सूचित होता है कि साधक ६..आत्मा को पवित्र बना कर, विषम कषाय की ज्वाला को शांत कर इस
व्रत की ओर अग्रसर होता है। वैदिक विधि-विधानों में धर्मक्रिया के पहले बाह्य शारीरिक शुद्धि को प्रमुख स्थान दिया है । उसको वहाँ इतना अधिक महत्त्व मिल गया है कि आगे चल कर वही धार्मिक क्रिया का एक अंग बन गया और धर्म का मूल स्वरूप अोझल हो गया है । पर यहाँ सामायिक साधना में प्रारम्भ से ही शारीरिक शुद्धि को विशेष महत्त्व न देकर मानसिक पवित्रता पर अधिक बल दिया गया है । यही कारण है कि साधक इरियाव हियं, तस्सउत्तरी, लोगस्स आदि सूत्रों द्वारा आत्मा की मलिनता को धोकर, पापकारी प्रवृत्तियों से पीछे हट कर प्रतिज्ञा करता है कि मैं सव सावध योगों का त्याग करके सामायिक व्रत अंगीकार करता हैं, जव तक इस नियम की प्रतिज्ञा का पालन करूंगा, तब तक न तो मैं स्वयं मन, वचन, काया से पाप में प्रवृत्त होऊंगा, न अन्य किसी से मन, वचन, काया द्वारा पाप कर्म कराऊंगा । यह व्रत ग्रंहरण सांस्कृतिक, नैतिक व आध्यात्मिक · दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जैसा वीज, हो और उसे जिस रूप में डाला जाय, वैसा ही कृषि का परिणाम आगे आने की सम्भावना रहती है । ..
यहां भी साधक त्याग व साधना के इन बीजों को किस प्रकार डालता
है, यह द्रष्टव्य है । इसके लिये हमें प्रस्तुत सूत्र की आत्मा को टटोलना .: होगा, इसकी गहराइयों में झांकना होगा। .. .. .... ... सर्व प्रथम साधक 'करेमि भंते 'सामाइयं' शब्दों द्वारा भगवान व गुरु ..
. महाराज के समक्ष अपनी इच्छा प्रकट करता है । भगवान शब्द कितनी भावE. भक्ति से भीना है। इसका तात्पर्य है कि आप सुखदाता हो, कल्याणकारी E. हो, भव या भय का नाश करने वाले हो। .
..." आगे के ‘सावज्ज जोगं पच्चक्खामि' इन शब्दों में सामायिक का आशय निहित है। सामायिक में साधक क्या करता है ? : नावद्य योग का त्याग । सावध योग का त्याग ही तो. सामायिक है । करेमि भंते के पाठ में 'सावज्ज' शब्द केन्द्रीय शव्द है। पूरे पाठ का सार इस एक शब्द के पीछे निहित है। सावध में दो शब्द हैं-स-अवद्य। स याने सहित और अवद्य.
. . सामायिक - सूत्र /.४५
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