Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 39
________________ श्रत द्वारा भावच त जगाने का कारण है । इन चंद अक्षरों में अखूट कर्म क्षय करने की शक्ति छिपी है। .. ....... .. सूत्रकार ने लोगस्स का प्रारम्भ ही भगवान की विशेषताओं से किया है । प्रथम गाथा में, उसने यह प्रकट करते हुए कि मैं चौवीस ही केवली भगवान की स्तुति करता हूँ, उन्हें चार विशेषणों से सम्बोधित किया है (१) लोक में उद्योत करने वाले ..(२) धर्म तीर्थ की स्थापना करने वाले. (३) जिन और... ....... (४) अरिहंतः। ...... ... १. तीर्थंकर भगवान अज्ञान अन्धकार से आछन्न विश्व में अपनी ... ज्ञानप्रभायुक्त किरणों से दिव्य प्रकाश करने वाले हैं । सूर्य धराधाम पर ... भौतिक प्रकाश करता है। वैसे तीर्थंकर भगवान आध्यात्मिक गगन के दिव्य सूर्य हैं । जव धरा मण्डले पर उनका जन्म होता है और वे साधना द्वारा स्वयं केवल ज्ञान, केवल-दर्शन की प्राप्ति कर इसका अलौकिक प्रकाश यत्र-तत्र विखेरते हैं तो मिथ्यात्व व अज्ञान का अन्धकार यहां टिक भी नहीं ... पाता। .. .. .. . .. ... २. तीर्थंकर भगवान धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले हैं। तीर्थ का अर्थ है जिसके द्वारा तिरा जाय । तीर्थ के साथ यदि धर्म को जोड़ दिया जाय तो तात्पर्य होगा ऐसा धर्म जिसके द्वारा संसार सागर से तिरा जाय । ऐसा धर्म ही सच्चा तीर्थ है। चौवीस ही तीर्थंकर अपने-अपने समय में धर्म तीर्थ की स्थापना करते हैं। समय के प्रभाव से धर्म में जो विक्षेप ‘एवं कमजोरी आ जाती है उसे दूर कर पुनः धर्म की प्रभावना करते हैं। तीर्थ की स्थापना के कारण ही वे तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर भगवान चार तीर्थ के माध्यम से धर्म की स्थापना करते हैं । ये चार तीर्थ हैं-साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविका । ..... .. .. : ३. तीर्थंकर भगवान को 'जिन' विशेषण से सम्बोधित किया गया है । 'जिन' का अर्थ है विजेता । प्रश्न हैं किस पर विजय ? विजय शत्रुओं परं हासिल की जाती है । राग, द्वपादि, केषांय एवं अष्ट कर्म ही आत्मा के शत्रु हैं । इन कषायों, विकारों एवं कर्मों पर विजय दिलाने वाला ही सच्चा विजेता है तथा यह विजय ही सच्ची विजय है। इनको जीतने से ही प्रात्मा जिन कहलाती है। सामायिक - सूत्र/३६ . --. ..

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