Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 29
________________ 'मि' त्ति अमेराई ठियो, 'दु'त्ति दुगंछामि अप्पारणं ।। . 'क' त्ति कहं मे पावं, 'ड' त्ति डेवेमि तं उवसमेणं। . एसो मिच्छा दुक्कड-पयक्खत्थो समासेणं । मि का अर्थ मृदुता (कोमलता एवं अहंकार त्याग छा का अर्थ दोष छादन-दोषों का त्याग मि अर्थात् मर्यादा का स्थिरीकरण दू याने प्रात्मा को दुत्कार-फटकार क याने कृत पापों की मन से स्वीकृति ड का अर्थ है उन पापों का उपशमन आचार्य भद्रबाहु कृत 'मिच्छामि दुक्कडं' की यह व्याख्या उस शव्द की भावना को भलिभांति व्यक्त करती है। प्रश्न-... जब 'ढाणासो ठाणं संकामिया' अर्थात एक जीव को एक स्थान से दूसरे - स्थान पर हटाने में हिंसा है, तो रजोहरण द्वारा पूंजना उचित कैसे होगा ? क्योंकि इसके अन्तर्गत भी हम जीव को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखते हैं ? . . ... .. . ... .. - उत्तर- 'ठाणाओं ठाणं संकामिया' शब्दों का तात्पर्य दुर्बुद्धि या स्वार्थ से जीवों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हटाने का है। शास्त्रकारों ने इसमें हिंसा का उल्लेख किया है। किन्तु रजोहरण द्वारा पूजने में प्राशय जीवों की दुर्बुद्धि से हटाने या उन्हें कष्ट देने का नहीं वरन् उनकी रक्षा करना का है साधक जीवों को पैर से कुचल कर दवने से बचाने के प्राशय से दया भाव से ही रजोहरण द्वारा पूजने की क्रिया करता है न कि किसी दुर्भावना से ।

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