Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 27
________________ डालना हिंसा है । अहिंसा के सम्बन्ध में इतना सूक्ष्म व विश्लेषणात्मक विवेचन अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।... . इस प्रकार उपर्युक्त प्रकार से जीव व उनकी विराधना के भिन्न-भिन्न · प्रकारों का उल्लेख कर हृदय से प्रायश्चित करते हुए यह कामना अभि व्यक्त की गयी है कि 'तस्स मिच्छामि दुक्कड' अर्थात् 'उसका दुष्कृत-पाप . मेरे लिये निष्फल सिद्ध होवे । पाप का कितना भय ? पापों का फल कितना भयावह है ? हलुकी आत्मा को निश्चय ही इससे महान् भय होता है वह प्रभु से इन पापों का कटु फल मिथ्या साबित होने की प्रार्थना करता है। ...... . . .... . .. पश्चाताप व आत्म निरीक्षण से गन्दे वस्त्र के साबुन द्वारा स्वच्छ हो जाने की तरह ही आत्मदेव भी निर्मल पाप विमुक्त, तथा स्वच्छ-विशुद्ध बन जाता है । वस्तुतः आलोचना करते समय साधक अपने पापों की गठरी खोल देता है। उसका वोझ हल्का हो जाता है। प्रायश्चित से साधक निकाचित व चिकने कर्मों के बन्धन की श्रेणी से निकल जाता है। क्योंकि कर्म वन्ध में भावों का महत्व ही अत्यधिक है.। . प्रश्न-१ इच्छाकारेणं के पाठ की विषय सामग्री क्या है ? उत्तर- इस पाठ की विषय सामग्री. गमनागमन क्रिया में लगे पापों की ":.: विशुद्धि से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत साधक सामायिक में. - : : बैठने से पूर्व या पश्चात् आने-जाने या किसी कार्य को करते समय ..... होने वाले पापों की पश्चाताप द्वारा. विशुद्धि करता है । . . प्रश्न-२ इस सूत्र के कितने नाम हैं व कौन-कौन से तथा क्यों ? उत्तर. (i) आलोचना सूत्र एवं (ii) ऐपिथिकी प्रतिक्रमण (iii) इच्छा कारेणं का पाठ। इसे पालोचना सूत्र कहा गया है क्योंकि इसके अन्तर्गत ..........: साधक द्वारा अपने पापों की आलोचना की गई है। इसे . . ऐर्यापथिकी प्रतिक्रमण भी कहा गया है क्योंकि इसके ..... .. अंतर्गत ईर्यापथगमनागमन के मार्ग में लगने वाले पापों की आलोचना कर उससे पीछे हटने की क्रिया की जाती है। और 'इच्छाकारेणं' इस आदि पद के कारण इच्छाकारेणं कहते हैं। प्रश्न-३. जीवों की विराधना के सूत्र में कितने प्रकार बतलाए हैं ? .. उत्तर- इस सूत्र में जीव विराधना के अभियादि (जीवयांग्रो ववरोविया तक) दस प्रकार वेतलाये गये हैं। सामायिक - सत्र । २७

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