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. पाकर महान मूल्य वाली. बन जाती है, उसी प्रकार बिना सम्यक्त्व असीमसाधना द्वारा तपश्चरण करना भी मात्र काय कष्ट है, साधना नहीं। यही व्यवहारिक-चारित्र सम्यक् श्रद्धा के साथ हो तो. मुक्ति पथ का चिराग बन । सकता है। सम्यक्त्व ही वह द्वार है जिससे यात्मिक धन के भंडार का रास्ता खुलता है । जब तक यह रास्ता बन्द है तब तक. आत्मिक धन की प्राप्ति असम्भव है । भगवान महावीर ने अपनी देशना में कहा है- .....
. "ना दंसणिस्स नारणं, नाणेण विरणा न हुति चरण-गुणा । ..
अगुरिणस्स नत्थि मोक्खो, नस्थि प्रमोक्खस्स निवारणं' ।।" . . . सम्यक्त्व भले-बुरे को समझने की विवेक दृष्टि है। इसे प्राप्त कर व्यक्ति धर्म का साक्षात्कार कर लेता है, पौदगलिक भोगविलासों की प्रोर से उदासीन-सा होता हुआ शुद्ध आत्मिक स्वरूप की ओर अभिमुख होता
है, इससे आत्मा और परमात्मा में एकता साधने का भाव जागृत होता है । .. सम्यक्त्व का व्यवहारिक अर्थ है विवेक दृष्टि । जीवन को सन्मार्ग
की ओर आगे बढ़ाने के लिए. सत्य असत्य, धर्म अधर्म, सम्यक् और मिथ्या ... का विवेक अत्यन्त आवश्यक है। विवेक शून्य व्यक्ति अन्धे व्यक्ति की भांति
है जिसे यह मालूम नहीं है कि वह किस ओर बढ़ रहा है और किस ओर उसे बढ़ना है।
सम्यक्त्व वह अनमोल रत्न है जो समस्त दुःखों की रामवाण औषधि है। समकिती व्यक्ति न हर्ष से आप्लावित होता है और न ही दुःख से शोकाकुल । सम्यक्त्व भव-भ्रमण को घटाता है। एक क्षण भी सम्यक्त्व
का स्पर्श हो जाय तो जीव अर्द्ध-पुद्गल-परावर्तन काल से अवश्य संसार : विमुक्त हो जाता है। ...
'प्रस्तुत सूत्र में वरिणत सम्यक्त्व व्यावहारिक सम्यक्त्व है। इसकी भूमिका श्रद्धा पर है। यह श्रद्धा किनकी ? देव, गुरु और. धर्म कौन से? इसका विवेचन अग्रांकित पंक्तियों में किया गया है।
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.देव अरिहंत
• जैन धर्म का आधार आध्यात्मिक विचार धारा है । यहाँ परम पूजनीय देवपद के योग्य अरिहंत आदि वीतराग देवों को माना गया है न कि रागी, भोगी. व कामी सांसारिक देवी-देवताओं को।. सम्यक्त्वधारी का आराध्य देव. तो वही महापुरुष हो सकता है जो काम, विकार, राग, द्वेष, अज्ञान, मिथ्यात्व व अपूर्णता से सर्वथा परे है। जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र के विकास की चरम सीमा पर पहुंच चुके हैं। ऐसे अरिहन्त भगवान ही सच्चे देव हैं ।
सामायिक-सूत्र / २१