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@ सम्यक्त्व-सूत्र
अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुरणो। . जिगपण्णत्तं तत्तं इस सम्मत्त मए गहिय ।।
अरिहतो
- अरिहंत
सुसाहुणो
ट
इस
देवो
-. देव जावज्जीवं .- जीवन पर्यंत
सुसाधु गुरुपो
गुरु और जिरणपण्णत्त जिन भगवान द्वारा प्ररूपित (शास्त्र) तत्तं
तत्व है .
यह ....सम्मत्त
- सम्यक्त्व मए
- मैंने - गहियं - - ग्रहण किया है : प्रस्तुतं सूत्र सम्यक्त्व-सूत्र है । इसका संबंध श्रद्धा से है । सम्यक्त्व का अर्थ है सम्यक् श्रद्धा । सच्चे देव, सच्चे गुरु तथा सच्चे धर्म पर श्रद्धा रखना ही सम्यक श्रद्धा याने सम्यकत्व है। मिथ्यात्व अंधकार से यात्मिक प्रकाश की ओर अग्रसर होने की राह में सम्यकत्व प्रथम द्वार है। यह आगे की उच्चतर भूमिकाओं का आधार है । सम्यक्त्व यात्मिक विकास के सभी द्वारों को उन्मुक्त करता है। आत्मा विना सम्यक्त्व-सम्यग्दर्शन के श्रावक पद या साधु पद की प्राप्ति नहीं कर सकता। याने प्रकारान्तर से मुक्ति मार्ग की साधना हेतु सम्यक्त्व की प्राप्ति आवश्यक है।
सम्यक् श्रद्धा पूर्वक की गयी साधना ही साधना है, वही भव घटाने में सफल है, अन्यथा कर्म निर्जरा की दृष्टि से सर्वथा निष्फल है। जिस प्रकार विना अंक के लाखों, करोड़ों, अरवों, विदियां केवल शून्य कहलाती हैं तथा गणित में सम्मिलित नहीं हो सकती है पर ये संख्याएँ अंकों का आश्रय
सामायिक-सूत्र /२०