Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 18
________________ कल्लाणं का स्थूल अर्थ क्षेम, कुशल या शुभ होता है। गुरुदेव से हमें कल्याण प्राप्ति के साधनों व मार्ग का पथ-प्रदर्शन मिलता है । अत: उनके रिये इस विशेषण का उपयोग सर्वथा उपयुक्त है। ... 'मंगलं' का अर्थ शिव या प्रशस्त होता है। जिससे साधक का अहित दूर हो वही मंगल है। गुरुदेव ही.. साधक को हित का उपदेश देते हैं। जिसके द्वारा साधक पूजक से पूज्य-विश्ववंद्य हो जाता है, अतः वे मंगल रूप हैं। प्राध्यात्मिक साधना के उत्कृष्ट शिखर पर चढ़ कर ही त्रिभुवन पूज्य वन सकता है । गुरुदेव ही इस श्रेणी पर आरूढ होने के मार्ग को बताने में समर्थ हैं। __ 'देवयं' का अर्थ है देवता । देवता से यहाँ तात्पर्य सांसारिक भोग विलासी देवताओं से नहीं वरन् दैविक गुणों से अलंकृत महापुरुषों से है। प्राचार्य हरिभद्र के अनुसार देव वे हैं जो अपने आत्म स्वरूप में चमकते हैं । गुरु-. देव ही ऐसे चमत्कारी पुरुप हैं । अत. वे धर्म देव हैं। 'चेइयं' का अर्थ है ज्ञान । गुरुदेव ज्ञान गुण के भंडार हैं तथा वे ही इस ज्ञान ज्योति से अवोध व अज्ञान आत्माओं को प्रकाशित करते हैं फिर 'चित्ताल्हादक त्वात्'-वे चित्त को पाल्हादित करते हैं अतः उन्हें चेइयं कहा गया है। प्रश्न-१ वन्दन के कितने प्रकार हैं ? उत्तर- वन्दन तीन प्रकार के होते हैं । उत्कृष्ट, मध्यम व जघन्य । 'इच्छामि खमासमणो' के पाठ से १२ आवर्तन के साथ वंदन करना उत्कृष्ट वंदन. है। जव गुरुदेव के पास प्रायश्चित आदि करना हो या कोई विशिष्ट प्रसंग हो तो इस पाठ द्वारा वंदन किया जाता है।. .. तिवखुत्तो के पाठ द्वारा वंदन मध्यम चंदन हैं। साधारणतः यही परिपाटी वंदन के लिये प्रचलित है। आमतौर पर गुरुदेव को इसी पाठ द्वारा वंदन किया जाता है। श्वेताम्वर मूर्ति पूजक परम्परा में 'इच्छामि : -खमासमणो' से बैठ कर वंदन करने की परम्परा है। केवल 'मत्थएण वंदामि' जघन्य वंदन है। . प्रश्न-२ वन्दन की विधि क्या है ? . उत्तर- वन्दन पंचांग नमाकर किया जाता है । हूंठ की तरह खड़े रह कर केवल उच्चारण मात्र करना विधियुक्त वंदन नहीं है । प्रावर्तन करते हुए पांच अंग-मस्तक, दो हाथ व दो पैर तथा शरीर को नमाकर वंदन करना चाहिये। सामायिक - सूत्र / १८

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