Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 11
________________ ... अर्थात् चाहे सुख हो अथवा दुःख, किसी इष्ट वस्तु का संयोग हो या वियोग, चाहे वन में हों या महलों में, हे नाथ ! मेरी आत्मा इन सब स्थितियों में समान भाव से स्थिर रह सके । न तो. हर्ष हो और न ही शोक । न तो अनुकूल पदार्थों की प्राप्ति से हर्ष की अनुभूति हो और न इनके प्राप्त नहीं होने या वियोग से शोक ही। .. .. . .. ... नवकार मंत्र में जिन पंच परमेष्ठी को वन्दन किया गया है, उनको इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है। . . . . ... - १. अरिहंत-अरिहंत में दो शब्द हैं-अरिहंत । 'अरि' का अर्थ है हानि करने वाला शत्रु तथा हंत का अर्थ है नष्ट करने वाला । प्रश्न होता है शत्रु कौन से ? तथा यहां मारने का क्या तात्पर्य है ? यह मारना भी मुक्ति का रास्ता कैसा ? प्रत्युत्तर प्रस्तुत है कि प्रात्मा के असली शत्र मानव मानव नहीं, प्राणी प्राणी नहीं किंतु अपने वे विकार हैं जो आत्मगुणों को क्षति पहुँचाते हैं । वास्तव में शत्रु वे हैं जो हानि करने वाले हैं। तन व धन की हानि करने वाले वास्तव में आत्मा की हानि नहीं करते, किंतु जो काम क्रोधादि विकार प्रात्मगुणों की हानि करते हैं, वे ही वस्तुतः प्रात्मा के शत्र हैं। जो व्यक्ति कैवल्य प्राप्ति में वाधक इन घनघाती कर्मों को नष्ट कर देते हैं, वे ही सच्चे शत्रुनों को परास्त करने वाले महापुरुष अरिहंत हैं। घनघाती कर्म वे हैं जो आत्मा के सच्चे स्वरूप-दिव्य ज्योति के प्रगट होने में बाधक हैं-जैसे-ज्ञानावरणीय १, दर्शनावरणीय २, मोहनीय ३ व अंतराय ४ । इनका क्षय होने से केवल ज्ञान, केवल दर्शन आदि अक्षय गुणों की प्राप्ति हो जाती है। अरिहंत प्रभु अठारह दोष रहित और बारह गुण संहित हैं। . अरिहंत भगवान जिन अठारह दोषों से रहित हैं, वे निम्न हैं अंतराया दान लाभ, वीर्य भोगोपभोगगाः, हासो रत्यरतो भीतिर्जुगुप्सा शोक एवं च । कामो मिथ्यात्वमज्ञानं निद्रा चाविरतिस्तथा, . . . राग-द्वेषौ च नो दोषाः, तेषामष्टादशाऽप्यमी ।। अभि० . दानान्तराय १, लाभान्तराय २, भोगान्तराय ३, उपभोगान्तराय ४, वीर्यान्तराय ५, काम ६, हास्य.७, रति ८, अरति ६, भय १०, शोक ११, जुगुप्सा १२, मिथ्यात्व १३, अज्ञान. १४, निद्रा १५, अविरति १६, राग १७ एवं द्वेष १८ । दिगम्बर परम्परा में क्षुधा, तृषा, जरा जैसे शारीरिक दोषों को मिला कर १८ बतलाये हैं । वस्तुतः यहाँ मानसिक दोष से ही खास अपेक्षा है । शरीर के दोषों से अर्हत्ता में कोई कमी नहीं आती।

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