Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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ध्वानाज्जिनेश! भवतो भविनःक्षणेन, देहं विहाय परमात्मदशां व्रजन्ति। तीव्रानलादुपलभावमपास्य- लोके,
चामीकरत्वमचिरादिव धातुभेदाः।।१५।। जैसे स्वर्णकार अशुद्ध मिट्टी मिले सोने को अग्नि में डालकर अशुद्धता हटा देता है, तब मिट्टी अलग हो जाने पर शुद्ध सोना प्रकट हो जाता है। उसी प्रकार हृदय में आपका ध्यान करने से जीव अपनी अशुद्धता को छोड़कर शुद्ध परमात्म-स्वरूप को प्राप्त हो जाता है।
જેમ સોની અશુદ્ધમાટી મિશ્રિત સોનાને અગ્નિમાં નાખે છે, ત્યારે તેની અશુદ્ધતા દૂર થાય છે અને માટીના અલગ થવાથી શુદ્ધસોનું પ્રગટ થાય છે. તેવી જ રીતે હૃદયમાં આપનું ધ્યાન ધરવાથી જીવ પોતાની અશુદ્ધતા છોડીને શુદ્ધપરમાત્મા-સ્વરૂપને પ્રાપ્ત કરી લે છે.
When a goldsmith puts sand mixed impure gold in fire in order to remove impurities. The intense heat separates the impurities and pure gold is yielded. In the same way by meditating on your image a living being removes his impurities and gains the pristine form of supreme soul (Paramatma).
| चित्र-परिचय __ जैसे अग्नि में पकने के पश्चात् सोना मिट्टी को त्याग देता है और कुन्दन बन जाता है।
उसी प्रकार हृदय में प्रभु के ध्यान का तीव्र प्रकाश प्रकट करके योगीजन प्रभु के स्वरूप को प्राप्त करते हैं।
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