Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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राजा अरविंद को बहुत क्रोध आया। राजा ने कमठ को बुलाकर फटकारा-"दुष्ट ! नीच ! प्रजा की बातें सुनकर मैंने तुझे दण्ड नहीं दिया। अब तो तूने सभी मर्यादा तोड़ डालीं।"
फिर दण्डाधिकारी को बुलाया-"ब्राह्मण है, इसलिए इसे मृत्यु-दण्ड नहीं दिया जा सकता। इसका काला मुँह करके नगर के बाहर निकाल दो।"
"इस दुष्ट नीच ने अपनी अनुज वधु के साथ दुराचार किया है। इसलिए नगर से बाहर निकाला जा रहा है।"
लोग उस पर थूकने लगे-"धिक्कार है इस पापी को।"
अपनी इस दुर्दशा से कमठ को बहुत आत्म-ग्लानि हुई। साथ ही मरुभूति पर क्रोध आया-"उस दुष्ट ने राजा से शिकयत करके मुझे दण्ड दिलाया है। मैं इसका बदला अवश्य लूँगा।"
दुःखी होकर सोचता है-'अब मैं किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहा। वन में तप करके ही अपना जीवन पूरा कर दूंगा।' वन में भटकते हुए उसने तापसी दीक्षा ले ली।
अपने बड़े भाई की बदनामी और दुर्दशा देखकर मरुभूति का मन भी दुःखी हुआ।
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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