Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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रानी-"हाँ पुत्री ! तुझे पतिगृह में जाते हुए मैं सात रत्न देना चाहती हूँ ! सुन१. सदा मीठी वाणी बोलना। २. पति को भोजन कराके फिर भोजन करना। ३. अपनी सौतों को सौत नहीं, बहन समझना। ४. सास-ससुर का सम्मान करना। ५. चक्रवर्ती की पटरानी होने का कभी अभिमान मत रखना। ६. सौत की संतान को अपनी संतान के समान प्यार करना। ७. धर्म और कुल की मर्यादा का पालन करना।"
माता की शिक्षाओं को धारण करती हुई पद्मा बोली-"माँ ! तेरे ये अनमोल वचन अनमोल रत्न की भाँति सदा अपने साथ रखूगी।" फिर वह माता की छाती से लिपटकर सिसक उठी।
गालव ऋषि ने राजा को आशीर्वाद देते हुए कहा-"राजन् ! मैंने इस पद्मा (लक्ष्मी) को आज आपके हाथों में सौंप दिया है। आप इसकी हर प्रकार से रक्षा करेंगे।"
राजा ने ऋषि और रानी को प्रणाम किया-"आप चिंता न करें। यह हर प्रकार से सुखी रहेगी।"
आश्रम से विदा लेकर सुवर्णबाहु अपनी राजधानी में आ गया।
एक दिन आयुधशाला के रक्षक ने आकर निवेदन किया-"महाराज ! आयुधशाला में चक्ररत्न प्रगट हुआ है।"
सुवर्णबाहु उठकर आयुधशाला में आया। उसने चक्ररत्न की विधिवत् पूजा-अर्चा की। इसके पश्चात् सम्राट् ने अपने सेनापति को आदेश दिया-''हमारी आयुधशाला में चक्ररत्न प्रगट हुआ है। अतः अब हमें षट्खंड विजय के लिए प्रस्थान करना चाहिए।" ___राजा के आदेशानुसार विशाल सेना तैयार हुई। अनेक छोटे-बड़े राजा भी अपनी सेना के साथ आ गये। विजय यात्रा में सबसे आगे आकाश में चक्ररत्न चलता था, उसी के पीछे विशाल सेना चल रही थी।
चक्ररत्न के साथ विशाल सेना के आने की सूचना मिलने पर दूसरे राजा सोचते हैं-'चक्रवर्ती सम्राट् का प्रतिरोध कर नरसंहार करना व्यर्थ है। अच्छा है, हम स्वयं ही उसकी अधीनता स्वीकार कर लें।' ___ इस प्रकार चक्रवर्ती ने षट्खंड की विजय यात्रा कर अपना चक्रवर्तित्व स्थापित कर लिया। फिर अपनी राजधानी में आकर उसने अष्टम तप किया। फिर सेनापति को बुलाकर कहा-"अब राज्याभिषेक की तैयारी करो।"
बहुत ही उल्लास और धूमधाम के साथ सुवर्णबाहु का चक्रवर्ती पद पर राज्याभिषेक हुआ। सुवर्णबाहु षट्खंड अधिपति चक्रवर्ती सम्राट् बनकर प्रजा का पालन करने लगे।
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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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