Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तभी धरणेन्द्र देव ने मेघमाली को ललकारा-"अरे दुष्ट ! क्या अनर्थ कर रहा है ? क्षमासागर करुणावतार प्रभु को कष्ट देकर घोर पापकर्म कर रहा है। दुष्ट ! यह वज अभी तेरा संहार कर डालेगा। किन्तु क्षमामूर्ति प्रभु के समक्ष रहने से मैं तुझ पर प्रहार नहीं कर सकता। अपनी माया समेट ले।"
मेघमाली देखता है, सामने धरणेन्द्र देव खड़े हैं।
धरणेन्द्र देव कहता है-"दुष्ट ! प्रभु ने तो तुझ पर कृपा कर हिंसा पाप से बचाया था। जन्म-जन्म में तुझ पर क्षमा का अमृत वर्षाया। किन्तु तू हर जन्म में इनको कष्ट देता रहा और क्रोध की आग में झुलसता रहा। अब रुक जा ! अन्यथा भस्म कर डालूँगा।"
क्रोधित धरणेन्द्र देव को देखकर मेघमाली भय से काँप उठा। उसने तुरन्त अपनी माया समेट ली और प्रभु के चरणों में आकर माफी माँगने लगा-"क्षमा करो प्रभु ! मेरा अपराध क्षमा करो ! मैंने आपको नव जन्मों तक कष्ट दिये और आपने मुझ पर क्षमा की। आज मेरी रक्षा करो। धरणेन्द्र देव के क्रोध से मेरी रक्षा करो प्रभु !"
प्रभु पार्श्वनाथ तो अभी भी ध्यान में स्थिर थे। उनके मन में न धरणेन्द्र देव पर राग था और न ही कमठ पर द्वेष । उपसर्ग शांत हो गया।
कमठे धरणेन्द्र च, स्तोचितं कर्म कुर्वति। प्रभु स्तुल्य मनोवृत्तिः, पार्श्वनायः श्रियेस्तु तः।।
-आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि प्रणीत सकलार्हत स्तोत्र, श्लोक-२५
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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