Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
राजा-"क्यों? क्या वह विवाह करना नहीं चाहती?"
दूत-"राजन् ! बात यह है, प्रभावती एक बार कौमुदी महोत्सव के दिन उद्यान में गई। चन्द्रमा की शीतल चाँदनी में वह सरोवर के तट पर बैठी थी। तभी वहाँ कुछ गंधर्व कन्याएँ स्नान करने आईं। वहाँ वे नृत्य करती हुई एक गीत गा रही थीं। जिसका भाव था इस धरती पर पार्श्वकुमार साक्षात् काम के अवतार हैं। दिव्य रूप, दिव्य गुण, अनन्त बली, अद्भुत रूप-लावण्यशाली पार्श्वकुमार को जो प्राप्त करेगी, उस नारी का जीवन धन्य है।
गंधर्व बालाओं का गीत सुनकर प्रभावती तो जैसे पार्श्वकुमार की ही हो गई। उसने संकल्प किया-"पार्श्वकुमार के सिवाय संसार के सब पुरुष मेरे भाई तुल्य हैं। वे ही मेरे प्राणाधार होंगे।"
राजा अश्वसेन (मुस्कराए)-"तो इसलिए आप आये हैं !" दूत-''महाराज ! अभी मेरी बात अधूरी है...........आगे सुनिए।"
राजा-"सुनाइये !'' दूत-"कुशस्थल के निकट कलिंग देश का यवन राजा बड़ा पराक्रमी और दुर्जेय योद्धा है। उसने जब प्रभावती के रूप सौन्दर्य की चर्चा सुनी तो दूत के साथ कहलाया-"तुम्हारी कन्या यवनराज को सौंप दो। अन्यथा तुम्हारे राज्य का विध्वंस कर डालूँगा।"
राजा प्रसेनजित ने उत्तर दिया-"राजहंसी मोती चुगती है। कभी कंकर नहीं चुग सकती।"
क्रुद्ध होकर यवनराज ने कुशस्थल पर आक्रमण कर दिया। उसकी विशाल यवन सेना ने आकर नगर को चारों तरफ से घेर लिया है। पूरा नगर बंदीघर जैसा बना हुआ है।"
राजा अश्वसेन-"यह तो अन्याय है। अनीति है।" - "उस अन्याय-अनीति का प्रतिकार करने के लिए सहायता की जरूरत है। आप जैसे नीतिमान राजा ही धर्म की रक्षा करते हैं। विपत्ति में घिरे मित्रों की सहायता करते हैं।"
तलवार की मूठ पर हाथ रखते हुए महाराज अश्वसेन बोले-"क्षत्रिय का धर्म है अन्याय से लड़ना और न्याय नीति की रक्षा करना।" ।
फिर कहा-"आप निश्चिंत हो जाइए। हम तुरन्त ही सहायता के लिए सेना लेकर पहुँचते हैं।"
राजा ने सेनापति को आदेश दिया-"रणभेरी बजा दो ! तुरन्त सेना को तैयार करो। हम युद्ध के लिए तैयार होकर आते हैं।"
रणभेरी बजी। चारों तरफ सैनिक दौड़ने लगे। अपने-अपने शस्त्र उठाने लगे।
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org