Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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____पार्श्वकुमार मुस्कराकर कहते हैं-"यवनराज ! मेरे मन में आपके प्रति क्रोध है ही नहीं। तो क्षमा क्या करूँ? मैं तो सिर्फ यह चाहता हूँ कि आप अन्याय, अनीति का मार्ग छोड़ दें। युद्ध की जगह शांति और द्वेष की जगह प्रेम का व्यवहार सीखें।"
यवनराज-"स्वामी ! आप आज्ञा दीजिए मुझे क्या करना है ?" ___पार्श्वकुमार-"आप प्रसेनजित राजा से क्षमा माँगकर उनके साथ मित्रता स्थापित करें। अपने राज्य में जाकर न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करें। न तो मुझे आपका राज्य चाहिए और न ही आपको सेवक बनाना है।"
यवनराज-"धन्य है आपकी उदारता और महानता। बिना युद्ध किये ही आपने मुझे अपना सेवक बना लिया।"
सैनिकों ने जाकर राजा प्रसेनजित को समाचार दिया-"महाराज ! चमत्कार हो गया ! पार्श्वकुमार ने बिना युद्ध किये ही यवनराज को अपने अधीन कर लिया है।" ____ प्रसेनजित राजा अनेक प्रकार के उपहार लेकर पार्श्वकुमार के पास आया। हाथ जोड़कर बोला-"स्वामी! आपने तो अभूतपूर्व काम कर दिया। भयंकर नरसंहार से भी जो काम नहीं बनता, वह अपने प्रभाव से सहज ही बना दिया।" ____पार्श्वकुमार-"ये आपके मित्र यवनराज हैं।"
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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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