Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 276
________________ सेवकों ने लाठियों से लक्कड़ को कुण्ड से बाहर निकाला। कुछ लोगों ने उस पर पानी डालकर आग बुझा दी। एक व्यक्ति ने सावधानी से लक्कड़ फाड़ा। 52 तापस "राजकुमार ! हमारे तप में विघ्न मत डालो।” पार्श्व - "यह कैसा है तप ! जिसमें जीवों की घात होती हो, वह तप क्या तप होता है ? तप के नाम पर तुम कितने जीवों की घात करते जा रहे हो, देखो। " तब तक सेवक ने लक्कड़ को फाड़ लिया तो उसमें से आधा जला एक काला नाग निकला । नाग का शरीर आधा जल गया था। वह ताप के मारे तड़फ तड़फकर भूमि पर लोट-पोट हो रहा था । पार्श्वकुमार ने इशारा किया - "देखो ! तुम्हारी धूनी में इतना बड़ा नाग जल रहा था। क्या यही तुम्हारा धर्म है। यही तुम्हारा तप है ?" VERS Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ www.jainelibrary.org

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