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सेवकों ने लाठियों से लक्कड़ को कुण्ड से बाहर निकाला। कुछ लोगों ने उस पर पानी डालकर आग बुझा दी। एक व्यक्ति ने सावधानी से लक्कड़ फाड़ा।
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तापस "राजकुमार ! हमारे तप में विघ्न मत डालो।”
पार्श्व - "यह कैसा है तप ! जिसमें जीवों की घात होती हो, वह तप क्या तप होता है ? तप के नाम पर तुम कितने जीवों की घात करते जा रहे हो, देखो। "
तब तक सेवक ने लक्कड़ को फाड़ लिया तो उसमें से आधा जला एक काला नाग निकला । नाग का शरीर आधा जल गया था। वह ताप के मारे तड़फ तड़फकर भूमि पर लोट-पोट हो रहा था ।
पार्श्वकुमार ने इशारा किया - "देखो ! तुम्हारी धूनी में इतना बड़ा नाग जल रहा था। क्या यही तुम्हारा धर्म है। यही तुम्हारा तप है ?"
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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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