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" वहाँ खड़े सभी लोग चकित होकर देखते हैं। लोग तपस्वी को धिक्कारते हैं-"धिक्कार है तुम्हारे तप को। नागदेव तुम्हारी धूनी में जल रहे थे और तुम्हें पता तक नहीं ! थू! थू!!"
तापस भी चुप होकर नीचे सिर झुका लेता है। आँखें लाल हो जाती हैं। पार्श्वकुमार घोड़े से उतरकर नाग के पास आते हैं।
"नाग ! मैं जानता हूँ तुम भयंकर वेदना भोग रहे हो। मन को शांत रखो ! मंत्र सुनो, मंत्र पर श्रद्धा करो।" फिर उन्होंने सेवक को आज्ञा दी। सेवक ने जलते हुए नाग को मधुर स्वर में तीन बार नवकार मंत्र सुनाया-"नमो अरिहंताणं........नमो सिद्धाणं............।" नाग ने श्रद्धापूर्वक नवकार मंत्र सुना और पीड़ा सहते-सहते समतापूर्वक प्राण त्यागे।
नाग के शरीर से एक हलका नीला-सा प्रकाश निकलकर ऊपर की ओर उठा। नाग का जीव धरणेन्द्र नामक नागराज बना।"
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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