Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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राजा ने अन्तःपुर से वापस आकर दण्डनायक से कहा - " कारागार में बंदी सभी कैदियों को छोड़ दो। पूरे काशी देश में बारह दिन का उत्सव घोषित करो। बारह दिन तक पूरे नगर में उत्सव मनाया जाये।"
राजकोष का मुँह खोल दिया गया। गरीबों को अन्न-वस्त्र- भोजन दिया गया। वृद्ध दासों को दास कर्म से मुक्त कर दिया गया। इस प्रकार समस्त नगरवासी दरिद्रता- दीनता एवं बन्धनों की पीड़ा से मुक्त होकर खुशियाँ मनाने लगे। लोग धन्य-धन्य होकर कहने लगे-“संसार को ताप-संताप से मुक्ति दिलाने वाला कोई महापुरुष अवतरित हुआ है।"
स्वजनों के प्रीतिभोज में राजा ने घोषित किया - "गर्भकाल में माता के पार्श्व से नागदेव निकला था, इसलिए इस बालक को हम 'पार्श्व कुमार' कहेंगे।"
कुल की वृद्ध महिलाओं ने शिशु का दिव्य नीलवर्णी रूप देखकर कहा-"यह तो नीलकमल जैसा सुरम्य
है ।"
दूसरी बोली - " नीलमणि जैसी इसकी दिव्य देह कांति तो देखो।"
चन्द्रमा की कलाओं की तरह पार्श्वकुमार बढ़ा होने लगा।
पार्श्वकुमार आठ वर्ष का हुआ। पिता ने सोचा- 'पार्श्वकुमार को क्षत्रियोचित विद्याओं का ज्ञान कराना चाहिए।' अगले दिन गुरुकुल के कलाचार्य को बुलाया गया"आचार्यवर ! इस बालक को सभी प्रकार की शिक्षा देकर योग्य बनाएँ।"
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कलाचार्य – “महाराज ! यह तो जन्मजात
सुयोग्य है। इसको मैं क्या कला सिखाऊँगा ?"
स्वयं कलाचार्य ने पार्श्वकुमार से कई तरह का ज्ञान प्राप्त किया, क्योंकि जब प्रभु माता के गर्भ में आये थे तब से मति, श्रुत, अवधि ज्ञान अर्थात् तीन ज्ञान से युक्त थे ।
युवा होने पर पार्श्वकुमार साक्षात् कामदेव का अवतार लगने लगा। नौ हाथ ऊँचे पार्श्वकुमार जब घोड़े पर सवार होकर नगर में निकलते तो स्त्रियाँ कहने लगतीं - "वह स्त्री परम सौभाग्यशाली होगी जिसका पति कामदेव जैसे अपने राजकुमार होंगे।"
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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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